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________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 137 तथा प्रतिभाशाली थे और उनको भी गुफालेखों रिकार्डों में स्थान पाने का सम्मान मिला है। उनके शिष्य रेवडी वज्जर को तेंकण दिशेय सूत्रधारी उपाधि से गौरवान्वित किया गया था। कला का ज्ञान आनुवंशिक था। शिववधन मान, शिवा तथा शुभदेव, पिता पुत्र तथा प्रपौत्र जाने माने नक्काशीकार थे। बलदेव, आर्य, पुल्लप्पन निर्माणदेवन, आर्यमिचि उपाध्याय, एरेंडर गणच, दोणसामी, अय्यसामी, कल्कुट्टे तथा कोट्टमंचि आदि प्रसिद्ध शिल्पकार थे। नरसोब्ब, अपने युग का एक अन्य सम्मानित छैनिकार (शिल्पकार) जिसकी सारे भारतखंड-जंबुद्वीप में कोई बराबरी नहीं कर सकता था। चालुक्य साम्राज्य कलाकारों, नर्तकों तथा संगीतकारों के लिए भूस्वर्ग सिद्ध हुआ। अचला की गर्जना , एक अद्वितीय कलाकार तथा नर्तक ने अन्य कलाकारों के गर्व को चूर कर दिया। इस युग के सर्जनात्मक कलाकारों का यही वैशिष्टय था। इसी युग में / चालुक्य शैली तथा शिल्पकला का उद्भव हुआ। __ ऐहोळे जैन आबादी का एक प्रमुख व्यापारी शहर के रूप में चमकने लगा। रविकीर्ति ने जैन भवन बनवाने के लिए यही क्षेत्र क्यों चुना क्योंकि वह इसी प्रदेश का निवासी था। रविकीर्ति द्वारा बनवाये गये इस मंदिर के पूर्वी दीवार पर लिखी गई गयी प्रशस्ति तथा शिलापट पर लिखा गया संस्कृत का प्रसिद्ध पद अर्थपूर्ण तथा प्रतीकात्मक है। ऐहोळे तथा बादामी गुफाओं में पार्श्व तथा बाहुबलि की पवित्र तथा प्रभावी कथा के पहल के साथ ही एक नयी शुरूवात हुई और दक्षिण में एक नयी लोकप्रिय संरचना की प्रवेशिका बनी। यह मात्र चार दिवारों में ही चली नहीं बल्कि उसने छलाँग लगाई। कर्नाटक में हल्लुर के पार्श्वनाथ के मंदिर की बाहरी दीवारों पर यह कथा दोहराई गई है। यह स्थान भौगोलिक अथवा सामान्य रूप से ही क्यों न हो ऐहोळे से काफी दूर नहीं है। यह भी ज्ञात कर लिया गया है कि जैन मुनियों के संघ का अनुयायी परलूरु गण हळ्ळूर से संबंधित है। . गुफाओं के वैशिष्ट्य का सार निम्नलिखित है 1. ऐहोळे तथा बादामी की गुफाएँ कथा, शैली तथा उत्खनन के काल में एक दूसरे से बहुत मिलती जुलती है। पार्श्व तथा बाहुबलि की चार शिल्पाकृतियाँ, (क्रमशः ऐहोळे तथा बादामी में दो) एकदम से पहचानी जाती हैं और वे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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