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________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 131 सी है। उसकी विशाल आँखें, धनुष्याकार भौहें, मृदु कपोल, सुंदर-सा जबडा, तथा कोमल अधर आदि सुंदरता से तराशे गए हैं।” (नागराज्जय हंप 2004-54-55) “अंबिका के मुकुट के मध्य छोटे आकार के जिन की आसनस्थ प्रतिमा के अलावा एक और थोडे से बड़े आकार वाले पद्मासन वाले जिन की प्रतिमा अंबिका के सिर के ऊपर छत्र के समान फैले, आम्रवृक्ष की शाखाओं में प्रतिष्ठापित है, जो बडा ही मनमोहित करने वाला दृश्य है। मध्य में बैठा जिन अर्हत पार्श्व है हालाँकि उसके सिर के ऊपर का सर्प छत्र धुंधला है। गंधर्व, नगाडे वाले तथा आम्र की शाखाओं को बहुत कठिनाई से पहचाना जा सकता है। उपर्युक्त विवरण देवगढ में स्थित अंबिका की प्रतिमा के साथ थोडी बहुत मिलती जुलती है, यह इस बात को दर्शाता है कि जो देवता आम्रवृक्ष के नीचे बैठी है उसने परम देवता के पद को प्राप्त किया है और उसने जिन शासन देवता के पद को प्राप्त किया है।" (supra) यक्ष?यक्षी का परिहरों के रूप में तीर्थंकरों के साथ संबंध की पहल तथा प्रचलन चर्चाधीन काल में हुआ। जिन शासनदेवता की प्रतिमाओं को समर्पित करने की प्रथा की पहल इस युग के दौरान ही प्रारंभ हुई ऐहोळे बादामी तथा पट्टदकल्ल जिन वास्तुकला के साँचे के रूप में बदला जहाँ से और भी अधिक प्रगतिशील बनावटों की शुरूवात हई चालुक्य जिन धर्म के हितैषी थे और इस युग की कई सुंदर जैन प्रतिमाएँ तथा शिल्प इसकी साक्ष्य है। * विस्तार से तराशे तथा काटे गवाक्ष में एक पत्तों से अलंकृत बौनी सी प्रतिमा। * कथावस्तु का सुंदरता के साथ वर्णन संभवतः बहुत ही अच्छा है। * पार्श्व तथा बाहुबलि की प्राचीन परंपरा तथा विषयवस्तु का अत्यंत सशक्त रूप से दर्शाया गया है। * चालुक्यों के सबसे महत्वपूर्ण तथा दिलचस्प शिल्प तथा नक्काशी यक्षों, अंबिका, ज्वाला, श्याम, सर्वाह्न, धरणेंद्र तथा पद्मावती के है। निशंकतः इस काल के श्रेष्ठ शिल्प जैन गुफाओं के हैं। विशेषकर ऐहोळे की गुफाएँ इतनी विशाल हैं कि अन्य तीन की कलात्मकता तथा सुंदरता से स्पर्धा करती सी नज़र आती हैं। * दरबारी कवि रविकीर्ति की इष्टदेवता अंबिका की प्रतिमा भारत की सबसे सुंदर प्रतिमाओं में से एक है, जिसकी उत्कृष्ट कारिगिरी के लिए चालुक्य शिल्पकारों Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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