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________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 129 आधार पर पद्मावती की यह प्रतिमा आठवीं सदी के मध्य की होगी। क्रमानुसार यह शिल्प ज्वालामालिनी तथा अंबिका का समकालीन शिल्प हो सकता है। विद्यमान पद्मावती की प्रतिमा यह निश्चित करती है कि पद्मालय, जिसका उल्लेख कदंबपुरालेख में हुआ है, जैन देवता का मंदिर था। / प्रत्येक राजा का जीवन तथा व्यक्तित्व जैन धर्म के प्रसार के लिए समर्पित था। कई महान कृतियाँ तत्कालीन जैन धर्म का महत्व समझाती हैं। श्रीवत्स के प्रतीक वाली तीर्थंकरों की स्थानांतरित तीन वैशिष्ट्यपूर्ण प्रतिमाएं जिन्हें महापुरूष के लक्षण के रूप में विशेष रूप से विशाल छाती पर तराशा गया है। आठवीं सदी की हैं प्रतिमाएं विशाल राज्य के कोने कोने में जैन धर्म का प्रभाव किस प्रकार व्याप्त था इसे बताने के लिए ही जैसे सुरक्षित रही और वे प्रतिमाएं हैं.... 1. कळ्ळवप्पु की कायोत्सर्ग मुद्रा में जिन का प्रतिमा अब बेंगळूरु के सरकारी वस्तुसंग्रहालय में है। दक्षिण कर्नाटक में श्रीवत्स का यह एक उल्लेखनीय तथा दुर्लभ उदाहरण है। जबकि तमिलनाडु में यह पुर्णतः उल्लेख नहीं हुआ हो ऐसा नहीं है। यह बात ध्यान में रखनी होगी कि यह प्रतिमा श्रीवत्य चिह्न के थोडे से ऊपर की ओर भग्न हुई है। और बड़ा सा सिर बाद में जोडा गया है ताकि प्रतिमा की सुंदरता बनी रहे। * 2. गुंटूर जिले के बापटळा की कायोत्सर्ग मुद्रावाली तीर्थंकर की प्रतिमा हैदराबाद के सतुसंग्रहालय में मौजुद है। . 3.. ध्यानमुद्रा में बैठे तीर्थंकर की प्रतिमा भालकी शहर के दक्षिण पश्चिमी भाग के मारुति क (हनुमान जगत) के पास है। विशाल छाती पर का चिह्न यह अर्थ देता है कि उच्च ज्ञान जिन के हृदय से प्राप्त होता है। कुछ मथुरा से लाये गए आयागपट, श्रद्धांजलि की सिल्लियों पर श्रीवत्स का चिह्न है। यह स्मरण रखना होगा कि ऐसे चिह्न भारत के बौद्ध तथा जैन धर्म समेत हर धर्म में, समान रूप से मिलते हैं। सील- मुहर उत्तर भारत में दूसरी सदी (कुशाणों का काल) से प्रमुखतः प्राप्त होते हैं। दक्षिण के दिगंबरों में यह परंपरा इतनी लोकप्रिय नहीं हुई। भाल्कि - एक प्राचीन स्थान भाल्कि में स्थित आसनस्थ जिन की प्रतिमा (1.24 मीटर लंबी तथा 0.85 चौडी) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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