________________ 122 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य अमोघवर्ष नृपतुंग (814-80) के धर्मगुरु विद्वान आचार्य जिनसेन पार्वाभ्युदय लिखने से पूर्व निश्चित ही ऐहोळे तथा बादामी की गुफाओं को भेंट दी होगी। पार्वाभ्युदय मंदाक्रांता छंद में लिखा गया एक विशेष काव्य है। इस काव्य के प्रसिद्ध पार्श्वसंबर-धरणेंद्र कथा को बडे ही सुंदर तथा तीव्रता के साथ चित्रित किया गया है। धरणेन्द्र, पाताल का राजा, कमठ द्वारा उत्पन्न आपदाओं का नाश करने वाला लोकप्रिय शासन देवता हैं। उसके अन्य नाम भी है जैसे फणपति, फणिराजा नागराज, नागेन्द्र तथा धरणेन्द्र। नागराज का शिल्प उस युग के जैनेतर परंपरा में आम था / बादामी के जंबुलिंगेश्वर मंदिर में गूढ़मंडप (नवे, रामतलवितान) ई. स. 699 में नागराज का एक बहुत बडा तथा सुंदर शिल्प है। धरणेंद्र, धरणेन्द्र का संक्षिप्त नाम है। पुरूष और स्त्रियों का भी धरणेन्द्र पर नाम रखा गया है। नागों के प्रमुख धारण, पृथ्वी से निकलकर गहरे ध्यानधारणा में बैठे अर्हत पार्श्व के ऊपर अपना विशाल फन फैलाया है। उनकी प्रमुख रानी पद्मावती भी सहजता से ध्यान धारणा में लीन जिन की रक्षा के लिए रत्नजटित छत्र लेकर खड़ी हो गयी है। समर्पण की यह निखालिस क्रिया विभिन्न शिल्पों में अभिव्यक्ति पा गयी है। - कर्नाटक में प्राप्त धरणेंद्र के कई शिल्पों तथा शिल्पाकृतियों में बस्तिहळ्ळि (हळेबिडु) के पार्श्व मंदिर के मध्यवर्ती छत की शिल्पाकृति तथा होम्बुज तथा श्रवणबेळगोळ के सुंदर अक्कन बसदी (Nagarajaiah, Hampa: Akkana Basadi:20001.2) के गर्भगृह में प्रस्थापित धरणेंद्र की प्रतिमा (3-6 फीट) उल्लेखनीय है। गोदावरी जिले की ध्यान मुद्रा में कमल में बैठी अर्हत पार्श्व की अद्वितीय प्रतिमा जिसके ऊपर सात फनोंवाले छत्र की प्रतिमा चैन्ने के सरकारी संग्रहालय में है। जिसमें न चामरधारी है ना ही पंखेवाले देवदूत है। बल्कि पद्मावती और धरणेन्द्र ही जिन-पार्श्व के चामर झला रही हैं। इस शिल्पाकृति में धरणेन्द्र तथा पद्मावती को मानवाकार रूप में दिखाया है जो पार्श्व को चामर झला रहे हैं। दोनों को मात्र एक फन में दिखाया गया है। और दोनों के हाथ जिन सिंहासन के पीछे वाले दंड पर टिके हुए हैं। ज्वालामालिनी और श्याम अंबिका के समान, ऐहोळे ज्वालामालिनी तथा श्याम की प्रतिमाएँ, जो ऐहोळे के आठवें तीर्थंकर को चंद्रप्रभ के स्त्री तथा पुरूष सेवक के रूप में हैं, भारत में अपने किस्म की प्राचीन विद्यमान प्रतिमाएँ हैं। ज्वाला की स्थानांतरित चार फुट Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org