________________ 120 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य आम्रवृक्ष के नीचे बैठी सुंदर पतली कमरवाली युवतियों से घिरी अंबिका की प्रतिमा भग्न होते हुए भी भव्य है। दो हाथों वाली दुबली पतली अंबिका की कमर सिंहकटी जैसी है। __ वह एक भग्न भुवन सुंदरी सी लगती है। अंबिका के अलंकारों का विवरण तथा उसकी अनुयायियों का रेला एक दूसरे से आच्छादित है। तीन लडियों का कमरबंद तथा सेविकाओं तथा स्वामिनियों द्वारा पहना हुआ मुकुट और उनके हाव भाव लगभग समान ही हैं। असामान्य मूर्तिगत मुद्राओं से यह प्रतिमा अद्वितीय है। जो कि सारे दक्षिण में कला की परंपरा को अज्ञात थी। होयसळ राजा विष्णुवर्धन द्वारा जारी किए सिक्के पर सिंहवाहनी अंबिका का चित्र है। दिगंबरों की परंपरा में भी उसे कुष्मांडिनीदेवी के रूप में जानी जाती थी। धरणेन्द्र (नागराज, फणिपति) धरणेन्द्र तथा पद्मावती, जिनेंद्र पार्श्व के साथ हमेशा नज़र आते हैं। धरणेंद्र, नागों का राजा अपनी पाँच या सात या नौ फनों से पार्श्व के सिर पर छत्र बनाता है। तो पद्मावती उसके ऊपर छत्र पकडे हुए हैं। श्वेतांबर परंपरा में धरणेंद्र का उल्लेख यक्ष के रूप में हुआ है और जिसे चार हाथों के साथ दिखाया है। ___ कर्नाटक के शिल्पकला में तमिळनाडु और आंध्रप्रदेश में भी धरणेन्द्र एक सर्प के रूप में दिखाया गया है। जहाँ वह पार्श्व के सिर पर अपने फन से छत्र बनाए हुआ है। कुछ शिल्प अधिकतर तमिळनाडु की शिल्पाकृतियाँ जैसे कळुगुमलाइ, आनैमलाइ तथा पेच्चिपल्लम में धरणेन्द्र को मानवाकार में चित्रित किया गया है। जहाँ उसे अपने पद नागराज के अनुसार उसे सर्पफन के साथ दर्शाया गया है। धरणेन्द्र ने अपना दाहिना हाथ तर्जनीहस्त शैली में ऊपर उठाया है और अपना बायां हाथ राजदंड पर रखा है और तीन सिरोंवाला यह सर्प उसके मुकुट की शोभा बढाता है। धरणेंद्र को जब आक्रमण करते हुए दिखाया गया है तब उसे केवल पशु आकृति के रूप में ही दिखाया गया है। . ऐहोळे की शिल्पाकृति के पार्श्व में बायीं ओर प्रार्थना की मुद्रा में जो आदमी बैठा है, विद्वानों के अनुसार वह पुरूष धरणेन्द्र नागराज है। किंतु फनवाली पुरुषाकृति जो पद्मावती के पीछे है वह धरणेन्द्र है। पद्मावती और पीछे वाले व्यक्ति दोनों को Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org