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________________ चौदह क्षेत्रोंसे संबद्ध प्रश्नोत्तरी 77 जाता तब उस कोशेटोके तंतुओमेंसे रेशमी वस्त्र बनाया जाता था / अब इन सारी बातोंमें व्यावसायिक स्पर्धा आ चूकी है / अत: बड़ी मात्रामें व्यापार करनेके लिए ये सारी चीजें सहज स्वरूपमें नहीं मिल पाती / अतः जिन्दा प्राणियोंको खत्म कर पायी जाती हैं / खात्मा भी क्रूरतासे किया जाता यदि इस प्रकारसे प्राप्त चीजोंका धर्मकार्योंमें उपयोग होनेसे, अजैन लोग जैनधर्मकी आलोचना करें, तो इन चीजोंका उपयोग करनेमें सावधान रहे, उन जीवोंको दुर्लभबोधि बननेमें निमित्त न हो / ऐसी चीजोंसे भी किसीकी चित्तपरिणति (निश्चय) ज्यादा निर्मल होती हो तो भी उन्हें संभवित लोकनिंदा(व्यवहार)को लक्षमें लेनी चाहिए। साथ साथ सूती कपडोंके लिए भी खेतोमें और मिलोंके प्रोसेसिंग विभागमें कितनी हिंसा होती है, उसकी भी छानबीन करनी चाहिए / सूती और रेशमी कपडोंमें होने वाली पंचेन्द्रिय हिंसाकी तुलना कर, जिसमें हिंसा कम होती हो, उसका उपयोग करना उचित होगा / प्रश्न :- (36) विशिष्ट कक्षाके दीपोत्सवी जैसे बड़े भारी दिनों में खर्चीली आंगी की जाय तो कई जीव परमात्माके प्रति आकृष्ट होकर लीनता प्राप्त करें / अब यदि कोई सामान्य स्थितिका आदमी उस दिनकी सो रूपयोंकी सादी आंगी का लाभ प्राप्त करें तो स्वद्रव्य की सादी आँगी करे या देवद्रव्यकी रकम शामिल कर भारी रकमकी आँगी करें ? उत्तर :- दूसरे भाईयोंको भी इस लाभकार्यमें संमिलित कर स्वद्रव्यसे ही यदि आँगी हो पाये तो सुंदर होगा, अन्यथा श्री संघकी व्यवस्था पर पूजा या कल्पित देवद्रव्यकी रकम उपयोगमें लेकर भारी आँगी की जा सकती है / ऐसी आंगी शासन-प्रभावनाका और अनेक जीवोंके बोधिकी निमित्त हो सकती है / प्रश्न :- (37) भगवानकी अपेक्षा, देव-देवीकी महत्ता बढ़ जाय, वह उचित है ? उत्तर :- जरा भी नहीं / ये तो भगवानके दास हैं / अरे, दासोंके (साधु, श्रावक) भी दास हैं / उनका महत्त्व भगवानकी अपेक्षा यदि कोई
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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