________________ 68 धार्मिक-वहीवट विचार प्रश्न : (21) देवद्रव्यकी रकम दूसरे किसी धार्मिक खातेमेंसे लानी हो तो कितने प्रतिशत सूद देना उचित कहा जाय ? . उत्तर : ऐसा करना उचित नहीं; क्योंकि उस रकमकी सुरक्षाकी विश्वसनीयता कहाँ ? संघमें संचालक बदलते रहतें है अथवा उनमें आपसी झगडे पैदा हो, नये संचालक सुधारकवृत्तिके हों तो, रकमकी अदायगी सूदके साथ पूरी न होनेकी संभावना है / ऐसा हो तो समुचे संघके सर पर बोजा आ पडे / अतः जब उपाश्रय आदिके निर्माणका प्रसंग उपस्थित हो तब देवद्रव्यकी रकम सूद पर न लेकर, गाँवके सुखी गृहस्थोंके पाससे बिना सूदकी पांच सालकी लोन लें / पाँच वर्षोंमें संचालक उस लोनकी अदायगी कर दें / उपाश्रय आदि तैयार होने पर मकान पर, खंडमें, रूमोंमें नामकरणकी योजना आदिके द्वारा रकम एकत्र कर, ली हुई लोनकी वापसी अदायदी कर दें / जब ऐसी बातकी जाती है, तब सामान्यतः सुखी गृहस्थ लोन देनेके लिए उत्साहित नहीं होते / क्योंकि उन्हें रकम वापस मिलनेके बारेमें संदेह बना रहेता है। काश, तो फिर ली गयी देवद्रव्यकी रकम भी वापस लौटानेके बारेमें संदेह न हो पाये ? क्यों खतरा मौल ले / / अन्यथा यदि रकमकी पूरी सूरक्षाकी विश्वनीयता हो तो बैंकमें देवद्रव्यकी रकम रखकर हिंसक कार्योमें (उद्योग, मच्छीमारी आदि) उसका उपयोग होने देना, उसकी अपेक्षा उपाश्रय आदिमें बैंकसे भी ज्यादा सूद देकर पूंजी लगाना उचित मालूम होता है / .. लेकिन लाख रूपयोंका सवाल उस रकमकी सुरक्षाका होनेसे, यह खतरा लेना इच्छनीय नहीं / प्रश्न : (22) आरती या स्नात्र पूजामें (बत्तीस कोडीके समय) समर्पित रकम कहाँ जमा हो ? देवद्रव्यमें या पूजारीके पास ? उत्तर : यदि उस प्रकारका परंपरागत अधिकार निश्चित हआ हो तो पूजारीको, अन्यथा देवद्रव्यमें, नये स्थापित संघोंमें देवद्रव्यमें ही ली जाय पूजारीका अधिकार न रखा जाय / प्रश्न : (23) घरदेरासरमें प्रतिमाजी कैसी और ज्यादा से ज्यादा कितने ईंचकी हो सके ?