________________ चौदह क्षेत्रोंसे संबद्ध प्रश्रोत्तरी पीछे कई श्रीमंत स्वद्रव्यका उपयोग करते हैं / उनमें जो सैकडों धर्मीजन संमिलित होते हैं, उन्हें तो परद्रव्यसे ही धर्माचरण करना है / तो क्या इस प्रकारकी परद्रव्यसे की जानेवाली तीर्थयात्रादिसे पापबंधन होगा ? क्या उन यात्रिकोंका भावोल्लास, उन्हें सम्यग्दर्शन आदिकी भेंट नहीं देता ? स्वद्रव्यसे ही धर्माचरण करनेकी जो लोग बातें करतें हैं, वे ऐसे यात्रादि धर्मकार्योंके आयोजनकी प्रेरणा आदि क्यों करते हैं ? सभी जगह विवेकबुद्धिसे आचरण करना चाहिए / सेठकी स्वद्रव्यसे बनायी गयी रसोईको यदिसेठका नौकर, अत्यंत भावोल्लाससे मुनिको वहोरावे तो पुण्यबंध होगा या नहीं ? हिरन, बलदेव और रथकारका द्रष्टान्त यहाँ सोचना चाहिए / स्वद्रव्यसे एक सौ रूपयोंकी ही आँगी हो सके, ऐसी एक मनुष्यकी आर्थिक स्थिति हो तो क्या पूजा-देवद्रव्यकी या कल्पित देवद्रव्यको रकम जोडकर दो हजार रूपयोंकी आंगी नहीं कर सकता ? उससे दोष लगेगा ? अवश्य, व्यक्तिगत मनमानी इस प्रकार नहीं हो सकती, परन्तु श्रीसंघ अवश्य उस प्रकार देवद्रव्यका उचित सदुपयोग कर सकता है / प्रश्न : (15) तीर्थरक्षाके कार्यमें देवद्रव्यकी रकमका उपयोग किया जाय ? उत्तर : अवश्य, तीर्थरक्षा यह एक प्रकारको देवपूजा है, अतः अवश्य उपयोग किया जाय / इतना ध्यान अवश्य रखा जाय कि यह रकम अजैन वकीलों आदिको दी जाय / तीर्थरक्षाके प्रचार निमित्त साहित्यका खर्च भी देवद्रव्यमेंसे जरूरत होने पर किया जाय / यद्यपि साहित्यके लिए तो आज ज्ञानखातेकी रकम मिल सकती है / .' प्रश्न : (16) हालमें, देरासरके आभूषण आदि चीजोंकी चोरियाँ ज्यादा होने लगी हैं, क्या करें ? उत्तर : यदि चोरी पर पूरी रोकथाम लगा पाये ऐसी परिस्थितिका सर्जन कर पाये तो वह उत्तम है; अन्यथा यद्यपि आभूषणपूजा बंध नहींकी जा सकती, लेकिन विवश होकर (शत्रुजयकी यात्रा एक बार श्री संघ बंध करने के लिए विवश हुआ था / ) आभूषण बनाना बंद करे / आभूषणोके साथ साथ, भगवान (पंचधातुके) भी सोनाके बने समझकर धा.व.-५