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________________ सामान्य सूचनाएँ देरासर बनानेकी भावना (मात्र भावना)से दस लाख रूपये शुभ (सर्वसाधारण) खातेमें दान देनेके संकल्पसे दिये / और श्रीसंघ इस रकममेंसे यथासंभव देरासर आदि बनाये, ऐसी भावना प्रदर्शित करता है / श्री संघ इस रकममेंसे देरासरका निर्माण करं, उसके लिए लोनरूपमें रकम देवद्रव्यके खातेमें दे / जब प्रतिष्ठा हो तब जो आमदनी हो, उसमें से उस लोनकी रकम शुभ (सर्वसाधारण) खातेमें वापस जमा कर दें / इसी प्रकार इस रकममेंसे अब संघ उपाश्रय बनायें / उसमें तख्ती योजनासे जो दान प्राप्त हो, उस रकममेंसे लोन शुभ (सर्वसाधारण) खातेमें जमा करें / इस प्रकार अनेक कार्य संपन्न होते रहें / यदि दाता इस प्रकार दान देते रहें, तो संघके कई काम संपन्न होते जायें / एक बातका ध्यान रखें कि इस प्रकार जो रकम जमा हो, उसे साधारण खातेमें जमा न कर,शुभ (सर्वसाधारण) खातेमें ही जमा करें / साधारण खातेकी रकम मात्र सात क्षेत्रोंमें ही उपयोगमें लायी जाय; जब कि शुभ (सर्वसाधारण) खातेकी रकम, तमाम धार्मिक कार्यों में उपयोगमें ली जाय / (नहीं, सामाजिक कार्यों में उसका उपयोग न किया जाय / लग्नकी बाडीके लिए गद्दे लाना, बरतन बसाना आदि कामोंमें उसका उपयोग न करें / ) एक स्थान पर देरासर, उपाश्रय दोनोंका निर्माण करना हो तो, उसके निमित्त प्राप्त रकम शुभ (सर्वसाधारण) खातेमें रखकर, उसमेंसे देरासर बनानेकी लोन दे / प्रतिष्ठा समयकी आमदनी होने पर, लोनकी रकम शुभ (सर्वसाधारण) खातेमें जमा करें / बादमें उसी रकममेंसे उपाश्रयका निर्माण किया जाय / (3) वास्तवमें तो समुची धार्मिक द्रव्योंकी रकम वर्तमान सरकारी बैंकोंमें रखना उचित नहीं, क्योंकि इस रकमका अधिकाधिक उपयोग सरकार मच्छीमारी, कत्लखाने, उद्योगे (कर्मादानका भयंकर और हिंसक व्यवसाय कि जो मानवजातिको बेकार, गरीब और बीमार बनाकर बरबाद करनेका काम करता हैं / ) में ही करती हैं / हमारे देवद्रव्य आदिकी रकमको सरकार ऐसे कार्यों में उपयोग करे, यह जरा भी उचित नहीं। ___यदि हम अपने गरीब साधर्मिक भाईओंको व्यवसाय करनेके लिए देवद्रव्यादिकी रकम, लोनके रूपमें, अच्छा सूद लेकर दें तो उसकी देवद्रव्यकी रकमके उपयोग करने की सूग दूर हो जाय / उसकी परिणति निष्ठुर हो जाय / अतः हम धार्मिक जीवोंको भी देवद्रव्यकी रकम देते नहीं / तो अब प्रश्न यह उठता है कि हिंसा करनेवाली बैंकोंको ऐसी पवित्र रकम कैसे दे सकते हैं ? लेकिन बड़ी कमनसीबी बात है कि प्रत्येक धार्मिक संस्थाको अपना ट्रस्ट बनाना और सरकारमें
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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