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________________ धार्मिक-वहीवट विचार 2000000000000000000000000000000000000000000 सामान्य सूचनाएं (3) (1) हमने देखा कि धार्मिक द्रव्यके कुल चौदह क्षेत्र हैं / इसके उपरान्त जो भी संस्था या जो भी प्रवृत्ति साक्षात् या परंपरया धर्मको या धर्म संस्कृति को द्रढ़ीभूत करनेका काम करती हो, उसे भी धार्मिक क्षेत्रमें मानी जाय / उससे विरुद्ध यह भी समझें कि कामचलाऊं रूपमें जिसा प्रवृत्तिमें अनुकंपा या धर्म दीख पडता हो, परंतु उसके परिणाममें बडा भारी अहित होता हुआ द्रष्टिगोचर होता हो तो वैसी प्रवृत्तिको 'धार्मिक' मानी न जाय / फिर भी यदि वैसी प्रवृत्तिमें धर्मप्रेमी जीव दान न करें तो लोगोंमें जैनधर्मकी निंदा होनेकी भारी संभावना उपस्थित होनेकी स्थिति हो तो, उस निंदाके निवारणके लिए औचित्य समझकर, उसमें रकम जमा करा दे / यथाशक्य इस बातको स्पष्ट भी करें / वर्तमान युगमें ऐसी कई सारी प्रवृत्तियाँ चलती हैं, जिनमें मानवसेवाका विज्ञापन किया जाता है / परन्तु सारी प्रवृत्तियाँ लंबे अरसेमें समुची मानवजातिको नुकसान पहुँचाती हैं / आर्यसंस्कृतिके मूलभूत तत्त्वों पर कुठारघात करती है / प्रजाकीय जीवनपद्धतिको तहस-नहस करनेवाली होती है / धर्मप्रेमी जीवोंको कभी-कुवृष्टि न्याय-पागल के साथ पागल बनकर-स्वरक्षा, धर्मरक्षा आदि करनेके रूपमें सहारा लेना पडता है / कभी अनिच्छनीय-अनिवार्य ऐसे अधर्मोंका सेवन करनेसे ही यदि धर्म या संस्कृति टिकते हो तो वैसा भी करना पडता है / ऐसे समय धर्मप्रेमी जीवोंको, ऐसे तत्त्वको अनिवार्य अनिष्ट समझकर निभाना या विस्तृत करना पडाता है / ऐसी बातोंको बराबर समझनेके लिए धर्मप्रेमी लोगोंको, कहीं भी दान करनेसे पहले, गीतार्थ गुरुका मार्गदर्शन लेना आवश्यक है, जिससे कहीं गलतकार्य न हो। (2) यदि संभव हो तो देरासर, पौषधशाला आदि जो भी निर्माणकार्य करने हों, या उबले पानी, आंगी आदिकी तिथियाँ लिखानी हो, वे तमाम-शुभ (सर्वसाधारण) खातेमें लिखानेकी बात दाताके पास रखें और विज्ञापित करें कि, "आप अपना दान शुभ (सर्वसाधारण) खातेमें दें। हम आपकी भावनाके अनुसार काम करेंगे; लेकिन उस कामके पूरे होनेके बाद, जो रकम बचेगी, उसे हम शुभ (सर्वसाधारण) खातेमें जमा रखकर - जब जिस धार्मिक खातेमें आवश्यक हो, वहाँ उपयोग करेंगे / यदि इसमें आपकी संमति हो, यदि आपका ऐसा संकल्प हो तो आपका दान हम शुभ (सर्वसाधारण) खातेमें जमा करें / " . इस प्रकार दान जमा करनेमें कई लाभ हैं / मान लें कि एक दाताने इस प्रकार
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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