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________________ धार्मिक-वहीवट विचार जीवदया खाता (14) मूक प्राणियोंको कत्लमेंसे बचानेके कामसे लेकर उन्हें चारा देने तकके कार्य तथा उनकी रक्षा के लिए उठाये जानेवाले आन्दोलन या प्रचारकार्य तथा उनके लाभार्थ किये जानेवाले अदालती मुकद्दमे आदि जीवदयाके कार्य माने जायँ / पशुओंको मरणान्त कष्टमेंसे बचाने रूप अभयदानमें जीवदयाकी रकमका उपयोग होता था, परन्तु अब तो उपर निर्दिष्ट कार्योंको भी प्रधानता दी जाय, यह देशकाल अनुसार अधिक आवश्यक मालूम होता है / बैंकोंमें जमा होनेवाली रकम, हिंसक कार्यों में ही खर्ची जाती है, अतः यथासंभव कायमी तिथियोजनाका अमल न करें / उपरान्त जीव मरते हों या चारा इत्यादिके अभावमें बिलखते हों तब जीवदयाकी पूंजी बैंकमें रखी न जाय / उससे उन जीवोंकी उपेक्षाजनित हिंसाका पाप लगता है / अत: जीवदयाकी रकम एक दिन के लिए भी बैंकमें जमा रखना उचित नहीं / जहाँ आवश्यक हो, पांजरापोल आदिमें तुरंत भिजवा देनी चाहिए / उस रकमको बैंकमें कायम रखकर उसके व्याजमेंसे जीवदयाका कार्य करनेकी भावनावाले लोग, जैनधर्मके तत्त्वोंकी पूरी-सही पहचान नहीं कर पाये, ऐसा मानना होगा / तो शक्य हो तो कायमी रकम रखकर, व्याज, सूदका उपयोग करनेकी शर्त पर, दान देनेके बजाय तात्कालिक खर्च हो जाय उस प्रकार दान करनेका विवेक करना चाहिए / लेकिन कहीं संयोगवश इस शर्त पर कोई बड़ी रकम दे, तो उस प्रकार भी कार्य करें / __मूक पशु-पक्षी आदिके प्रति जो दया, उसे जीवदया कहते हैं / इस खातेमें भेंट स्वरूप प्राप्त रकम यहाँ जमा कि जाय और उसका खर्च जीवदयाके कार्यों में, उसके आवश्यक मकानों के निर्माण आदिमें किया जाय / जीवदयाका सबसे बड़ा काम, ऐसे जीवोंको अभयदान होनेसे, सामान्यतः जीवोंको कत्लखानेसे छुडानेकी ओर सभी लोगोंका ध्यान ज्यादा होता है / यह बात सही है / लेकिन इसके साथ पांजरापोलोंके प्रति भी ध्यान दिया जाय / हाँ, पांजरापोल, महाजनोंकी सीधी देखभालके नीचे रहे; नौकरशाहीको सोंपी जाय तो जीव अधभूखे रहकर तडप-तडपकर मर जायें / इन पांजरापोल संस्थानोंके पीछे सबसे बडा भयस्थान यह है / यह संस्था हमेशा पैसे खानेवाली-खर्चीली संस्था
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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