________________ 28 धार्मिक-वहीवट विचार गुरुद्रव्यका उपभोग करनेवालेको दिये जानेवाले प्रायश्रित्तविषयक श्राध्यजितकल्पके' पाठको देखते हुए सारी रकम साधु-वैयावच्चके खातेमें जमा करना शास्त्रसंमत मालूम होता है। साधु-वैयावच्च खातेमें जमा रकमका उपयोग, उपर निर्दिष्ट साधु-वैयावच्चके कार्योंमें किया जा सकता है / गुरुपूजनसे प्राप्त होनेवाली वैयावच्च खाते की रकममें से साधुके उदरमें जानेवाले पदार्थों की वैयावच्च न हो, ऐसा कई महात्माओंका मानना है / कई, कालधर्मकी उछामनीकी रकमको (खाने के सिवा का) गुरुवैयावच्चमें ले जाने का सूचन करते हैं / कभीकभार इस रकमका उपयोग जीवदया-के खातेमें किया गया है / इस विषयमें विशिष्ट गीतार्थ जो आदेश दें, उसे प्रमाणभूत समझे। . ___मुनिके कालधर्म समय बोली जानेवाली अग्निसंस्कारादिकी उछामनीकी रकम सर्वसंमतिसे गुरुमंदिरमें तथा जिनभक्तिमें ली जाती है / ___ आजकाल गुरुमंदिरोंके निर्माणके बाद प्रायः उनकी देखभाल कोई नहीं करता / अत: यदि गुरुमंदिर बनाना ही हो तो ऐसा निर्माण करें कि जिसमें उस कालधर्म प्राप्त महात्माकी प्रतिमा हो और उसके साथ विशाल खंड हो, जिसमें साधु निवास कर सके, प्रवचनादि दे सके / कतिपय संसारी मातापिता, अपने शिक्षित पुत्र या पुत्रीको वैयावच्चमें भविष्यमें तकलीफ न हो, माँगना न पडे, उसके लिए वैयावच्चका ट्रस्ट बनाते हैं / उसके व्याजका उपयोग वैयावच्चमें करनेकी सुविधा रखते हैं / यह उचित नहीं है / इससे उन दीक्षितोंको उनके वालीदोंके ट्रस्टके प्रति मोह पेदा होगा / मालिकी हक्क भोगनेकी भावना पेदा होगी / उससे क्लेश पैदा होगा / जैनसंघ हमेशाके लिए सबकी सेवामें लगा रहा है / अतः ऐसे व्यक्तिगत हितोंका विचार वालीदोंको नहीं करना चाहिए / गुरुचरणोंमें अर्पित द्रव्य, अपनेवाले आदमीको दिलानेकी प्रवृत्ति मुनियों के लिए इच्छनीय नहीं / इस रकमका संचालक श्रीसंघ है, उसे ही यह द्रव्य सौंप देना चाहिए / यही बात ज्ञानपूजन की रकम की है / अरे, किसी भी प्रकारकी उछामनीके बारेमें भी यही नियम लागू होता है / अर्थात् जो उछामनी जिस संघके निमित्त बोली गयी हो, जो दान जिस संघमें लिखाया गया हो, वह वहीं जमा कराना चाहिए। किसी