________________ 208853030 SHRESTINEERNET 888888888888 8859888 388888888883383838 80888 परिशिष्ट-६ - 5 मयसदर विचमनी प.पू. शासनप्रभावक पं. श्री चन्द्रशेखर विजयगणिवर ___ महाराजकी सेवामें कोटिशः वन्दना / सुखशातामें होंगे। (1) स्वर्गस्थ पूज्यपाद गुरुभगवंत श्रीने देवद्रव्यमेंसे भी पूजा होनी चाहिए, ऐसा अभिप्राय प्रायः तीस साल पहले, वि. सं. २०१९के दिव्यदर्शन वर्ष 12, अंक 4/5 (दशहरा और आश्विन कृष्ण-३)में जैन संघके उदयमें कतिपय अवरोधक तत्त्व (गुजराती) 'जैनसंघना उदयमां केटलांक अवरोधक तत्त्वों' ईन लेखोमें (1-2) व्यक्त किया है / इ.स. 1963) (2) मूलशुद्धिप्रकरणकी टीकामें पृ. 78 पर आचार्य देवचन्द्रसूरिजी (कलिकाल सवर्जके गुरुजी) निर्देश देते हैं कि / 'अथ चेत् सुगन्धि पुष्पाण्येव न संपद्यन्ते शक्तिर्वा न भवति, ततो तथा संभवमपि पूजा विधीयमाना गुणाय सम्पद्यते / ' (तथा पृ. ८२में बताया है कि 'ता पहाण पुप्फाईणमसंपत्तीह इयहेहि विश्व विहेज्जमाणा महाफला भवइ / संपतीए पुण पहणेहिं चेव कायव्वा / ) . ली. जयसुंदरविजयकी वंदना ___ मूल शुद्धिप्रकरण ग्रन्थके व्याख्याकार ऐसा विज्ञापित करना चाहते है कि भगवानकी पूजामें उत्तम सुगंधित पुष्पोंका उपयोग करना चाहिए / लेकिन यदि ऐसे अपेक्षित प्राप्त न होते हों / (अर्थात् पर्याप्त ताजे सुगंधी फूल उपलब्ध न हो) अथवा तो ऐसे उत्तम फूल प्राप्त होते हो परन्तु श्रावकोंकी, आर्थिक द्रष्टिसे ऐसे किंमती फूल खरीदकर भगवानकी पूजा करनेकी क्षमता न हो तो (उन्हें फूलपूजा करनी चाहिए या नहीं-उसके उत्तर रूपमें कहते हैं कि यथासम्भव की जानेवाली पूजा लाभकारक होती है / (अर्थात् शक्ति न हो तो पूजा न करें ऐसी बात यहाँ नहीं है / अतः ऐसा तात्पर्य फलित होता है कि शक्तिहीन श्रावक स्वद्रव्यसे पूजा न कर सके तो यथासंभव परद्रव्यसे या संघ द्वारा देवद्रव्य या साधारणमेंसे केसर-चन्दन-फूलकी व्यवस्था की गयी हो, उसमेंसे पूजा करे तो भी लाभ होगा-दोष न लगेगा / ) सारांश यह है कि शक्ति न हो तो पूजा न करें, ऐसा नहीं कहते, लेकिन जिस उचित ढंगसे पूजा ही संभावना हो, उस ढंगसे पूजा करनेका उपदेश देते हैं /