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________________ परिशिष्ट-५ . 289 (1) गुरुपूजनका द्रव्य साधुकी वैयावच्च करनेवाले अथवा विहारमें साथ रहनेवाले डाक्टरको फीसकी रकम दी जाय / (2) (गुरुके चरणोंमें रखा द्रव्य ज्ञान अथवा जीर्णोद्धार में उपयोगमें लाया जाय / ) - मृगांकविजयकी वंदना उपसंहार :- अन्तमें इतना कहूँगा कि पर्दूषण पर्वकी आराधना करानेके लिए प्रतिवर्ष पचास जितने केन्द्रोमें जानेवाले युवकोंको संघकी ओरसे संचालनके बारेमें पूछे जानेवाले प्रश्नोंके उत्तर देनेकी भारी समस्या होती थी / उसको दूर करनेके लिये मेंने यह पुस्तक लिखा उसमें जो देवद्रव्य और गुरुद्रव्यके संचालनकी बात आयी उसे वि.सं. २०४४में संपन्न मुनिसंमेलनने किये प्रस्तावोंको ध्यानमें रखकर विस्तृत की है / मैंने अपनी ओरसे उसमें कोई प्रक्षेप नहीं किया / मैंने कहीं शास्त्राज्ञा विरुद्ध कुछ लिखा नहीं / ऐसा करने में मुझे मेरा परभव बिगडनेका भय लगता है / उपरान्त, इस पुस्तक द्वारा जैनसंघमें 'झगडा' पैदा करनेका मेरा कोई इरादा नहीं था / बेशक, झगडा उठ खडा हुआ है, उसका इन्कार नहीं, परन्तु मेरा ऐसा कोई आशय न था / इसी लिये मैंने इन बातोंका अनेक संघोंमें विवरण प्रस्तुत किया है, लेकिन कहीं ऐसे प्रस्ताव पारित नहीं कराये और भविष्यमें इन बातों पर ही हठाग्रही बनकर प्रस्ताव कराने या ऐसा प्रचार कराना या संघोंके बीच मनमुटाव पैदा करानेका काम मुझसे होनेवाला नहीं / मेरे विरोधीयोंने इस प्रश्र पर विवाद खड़ा कर, उसे समाचारपत्रों द्वारा बातका बतंगड बनाकर, मेरी प्रतिष्ठाको युवा-पीढीके दिलोंमेंसे खत्म करनेका सु-आयोजित दाव लगाया है / अस्तु, उन्हें उससे आनंदप्राप्ति होती हो और उनका ध्येय पूर्ण होता हो तो मुझे कोई आपत्ति नहीं / लेकिन इस सिद्धिको पानेके लिए भारतभरके संघोंके बीच घर्षण पैदा करना, यह मुझे उचित नहीं लगता / मैं इस अवसर पर विश्वास दिलाता हूँ कि मैं देवद्रव्यादिसे पूजा करनेका या पुजारीको वेतन देनेका कदाग्रह कभी करनेवाला नहीं / मुझे भी स्वद्रव्यसे पूजा हो, और पूजारीको वेतन दिया जाय, उसीमें रस है / (विरोध केवल, देवद्रव्यसे पूजा करनेवालेको देवद्रव्यभक्षणका पापबंध होता है, ऐसे प्रचारके बारेमें है / ) दोनों तपोवनोंके तमाम बालक जब वर्षों से स्वद्रव्यसे पूजा करते हों,
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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