________________ 288 धार्मिक-वहीवट विचार. देवद्रव्यका वेतन दिया जाता था) (9) हीरप्रश्नमें, तैल आदिकी बोली बोलकर, सूत्रोंका आदेश दिया जाय या नहीं ? ऐसा प्रश्न किया गया है / इस प्रश्रके जवाबको हकारमें देते हुए बताया है कि-यदि ऐसा न करें तो जिनमंदिर आदिका निर्वाह नहीं हो सकता / यह पाठ भी ज्ञानद्रव्यरूप परद्रव्यसे जिनमंदिर निर्वाह हो, ऐसा सूचित करता है / (ज्ञानद्रव्य, यह देवद्रव्य समान ही पवित्र द्रव्य है / यहाँ समझ लें कि. तैल, घी, चावल आदिसे जो बोली बोली जाय, उससे प्राप्त तेल आदिकी यदि जिनपूजामें आवश्यकता न हो तो उन तैल आदि पदार्थोंको धनादिमें रूपान्तर किया जाय / और उसमेंसे पूजारीको वेतन दिया जाय / ) उपरान्त, यदि अपने लिए निर्मित्त जिनमंदिरोंमें यदि देवद्रव्यका उपयोग किया जाय तो अपने लिये रखे गये पूजारी आदिके लिए देवद्रव्यका उपयोग क्यों किया न जाय ? 2. गुरुपूजनका द्रव्य गुरुवैयावच्चमें भी उपयोगमें लाया जायविषयक शास्त्रपाठ (1) 'श्राद्धजिनकल्प 'में गुरुपूजनरूप धनादिकी चोरीका प्रायश्चित्, उस धनमेंसे वस्त्रादि लाकर गुरुवैयावच्च करनेवाले वैद्यको देनेके रूपमें सूचित किया है / (धा. वही. विचार, गुजराती पृ. 22) (2) पू. सिद्धसेनसूरीजी महाराजके चरणोंमें समर्पित सवा करोड सोनामुहरोंके रूपमें गुरुद्रव्य, जीर्णोद्धार आदिके कार्यों में उपयोगमें लानेको कहा है / इस आदि शब्द गुरुवैयावच्चका ग्रहण करना चाहिए / (धा. वही. विचार, गुजराती पृ. 179) क्योंकि (3) 'द्रव्य सप्ततिका ग्रन्थमें गुरुद्रव्यका उपयोग कहां किया जाय' ? ऐसे प्रश्नके उत्तरमें जीर्णोद्धार, नूतन देरासरनिर्माण आदि गौरवशील स्थानोंमें गुरुद्रव्यका उपयोग करनेको कहा है / गुरुवैयावच्च, यह श्रावकोंके लिए गौरवास्पद स्थान है / अतः आदि शब्दसे गुरु-वैयावच्च ग्रहण करनेका है / (धा. वही. विचार गुजराती पृ. 231) (4) पू. बापजी म. साहबने (पू. सिद्धिसूरिजी म. साहबने) एक पत्रमें गुरूपूजनका द्रव्य गुरु वैयावच्चमें ले जानेका सूचन किया है / ये रहे वे शब्द :