________________ 282 धार्मिक-वहीवट विचार होगा तो उसमें से आंगी, महापूजा अष्टाह्निका महोत्सव (यात्रा-त्रिक-रूप यात्रा) अच्छी तरह हो पायेंगे अतः देवद्रव्यकी वृद्धि करनी चाहिए / ' ये शब्द बताते हैं कि देवद्रव्यमेंसे-राजमार्गसे जीर्णोद्धारादिकी तरह पूजा आदि भी हो सकता है / (देखें-'विजयप्रस्थान' पुस्तक अथवा धा. वही. विचार परिशिष्टि 1) ___ प्रश्न : (3) गुरुपूजनकी रकम किस विभागमें जमा की जाय ? जीर्णोद्धार विभागमें या साधु-वैयावच्च विभागमें भी ? / उत्तर : गुरुको अन्नपान, वस्त्रादिदान चरणोंमें धनादि समर्पण, ये सारे कार्य गुरुद्रव्य कहे जाते हैं / उसके दो प्रकार हैं / अन्नपान, वस्त्रादि जो गुरुद्रव्य, वह गुरुके उपभोगमें आनेवाला गुरुद्रव्य होने से उसे भोगार्ह गुरुद्रव्य कहा जाता है, जबकि गुरुपूजन करनेके प्रसंग पर गुरुचरणोंमें समर्पित द्रव्य, गुरुके उपभोगमें नहीं, लेकिन केवल गुरुकी पूजाके उपयोगमें आनेसे पूजार्ह गुरुद्रव्य कहा जाता है / - जो विवाद उपस्थित हुआ है, वह गुरुचरणोंमें रखे पूजार्ह गुरु द्रव्यविषयक है कि वह द्रव्य केवल जीर्णोद्धारके उपयोगमें लिया जाय या गुरुवैयावच्चमें भी लाया जा सके ? इसका जवाब यह है कि उसका उपयोग गुरुवैयावच्चमें भी किया जाय / ___ (सात क्षेत्रोंमेंसे निम्न विभागके द्रव्यको उपरके विभागमें उपयोगमें लाया जा सकता है, उस सामान्य नियमसे गुरुवैयावच्चमें उपयोगमें आनेवाले गुरुपूजनका द्रव्य, उसके उपरके दो विभागों-ज्ञान विभाग और देवद्रव्य विभागमें अवश्य उपयोगमें लिया जाय / उस दो खातेमें उपयोग करनेमें कोई दोष ही नहीं / ) प्रश्न यह है कि क्या गुरुपूजनके द्रव्यको गुरुवैयावच्च विभागमें लिया जा सकता नही है ? उसका उत्तर यह है कि 'द्रव्यसप्ततिका' के एवं 'श्राद्धजिनकल्प के पाठोंके आधार पर यह बात निश्चित होती है कि उस द्रव्यका उपयोग गुरुवैयावच्च विभागमें किया जाय / विक्रमराजाके प्रसंगमें उस द्रव्यका उपयोग जीर्णोद्धारादि विभागमें करनेका तत्कालीन आचार्य सिद्धसेनदिवाकर सूरिजीने कहा है, ऐसा उल्लेख एक प्रबंधकथामें हुआ है / लेकिन उसी चरित्रका वर्णन करनेवाली अन्य