________________ 274 धार्मिक-वहीवट विचार गृहीत है', ऐसी स्पष्टताके साथ स्वयं चढाये / (4) गृहमंदिरके (नैवेद्य, अक्षत) या उसकी उपार्जित रकम संघमंदिर में अर्पित करें, परंतु गृहमंदिरमें पूजा स्वद्रव्यसे करें / गृहमंदिरके नैवेद्यादिके विक्रयसे प्राप्त रकममेंसे न करें, अन्यथा घरका भारी खर्च होने पर भी जिनपूजा स्वद्रव्यसे संपन्न न होने के कारण, अनादर-अवज्ञादिका दोप लगे। (5) गृहमंदिरका मालिक, संघमंदिरमें भी गृहमंदिरके द्रव्यसे पूजा न करे अथवा देवमंदिरके पुष्पादिसे भी न करें, किन्तु स्वद्रव्यसे ही करें। इस प्रकार हम समझ सकते हैं कि यह सारा अधिकार गृहमंदिर विषयक है / ये सारे विधान गृहमंदिरके मालिकके बारेमें हैं अतः गृहमंदिरके देवद्रव्यसे या संघमंदिरके पुष्पादिसे पूजा करनेकी मना फरमायी गयी लेकिन उसी घरमंदिरके द्रव्यके पुष्प दूसरोंके पास समर्पित करवाने अथवा स्वयं स्पष्टता कर चढ़ानेका जो विधान किया है, उससे स्पष्ट होता है कि देवद्रव्यसे भी पूजा करनेमें कोई दोष मालूम नहीं होता / यदि देवद्रव्यसे पूजादिका निषेध हो तो इस प्रकार दूसरेके पास अथवा स्वयं (गृहमंदिरके मालिक द्वारा) स्पष्टता कर देवद्रव्यके पुष्प कैसे समर्पित किये जायँ ? अस्तु, सुज्ञात्मा, शास्त्रपाठोंके गर्भित यथार्थ रहस्यको समझकर उचित बोध प्राप्त करे, यही शुभेच्छा / . क्या उछामनी (उद्यापन) आदिसे उपार्जित एवं भंडार आदिके सारे देवद्रव्यको, निर्माल्य द्रव्य माना जाय ? आजकल जो ऐसा कहते हैं कि देवद्रव्यका पूजादि कार्योंमें उपयोग किया न जाय, केवल नूतन जिनमंदिर, जीर्णोद्धार और आभूषणके रूपमें ही उपयोगमें लाया जाय अथवा जहाँ साधारण द्रव्यकी शक्ति न हो, ऐसे गाँव आदि स्थलोंमें ही पूजादि कार्योंमें किया जाय, वे क्या नहीं जानते कि शास्त्रकारने देवद्रव्यके पूजा-निर्माल्य-कल्पित ऐसे जो तीन अथवा कहीं पर पूजा और निर्माल्य ऐसे दो भेद विशिष्ट किये है वहाँ निर्माल्य द्रव्यका जिनमंदिर और जीर्णोद्धार एवं आभूषणमें उपयोग किया जाय, ऐसा कहा ___ 'यत्र च ग्रामादौ आदानादि' द्रव्यागमोपायो नास्ति, तंत्र अक्षतबल्यादि द्रव्येणैव प्रतिमा पूज्यमानाः सन्ति / ' - 'श्राद्धविधि'