________________ 240 धार्मिक-वहीवट विचार पू. पंन्यासजी भद्रंकर वि. म.का पूज्यपाद प्रेमसूरिजी म. सा. परका पत्रक्रमांक - 2 सुरत, कार्तिक कृष्णा-९ परमाराध्यपाद प्रात:स्मरणीय परमकृपालु आचार्य देव श्रीमद विजयप्रेमसूरीश्वरजी महाराजके पुनीत चरणारविंदमें सेवक भद्रंकरकी कोटिशः वंदनावलि / आपके द्वारा भेजे गये देवद्रव्यसंबंधी पाठ और श्राद्धविधि, पृ. 40 से 110 तथा द्रव्यसप्ततिका पृ. १से 25 तक देखें हैं / दर्शन-शुद्धि, श्राद्धदिन कृत्य, उपदेशपद, धर्मसंग्रह, श्राद्धविधि तथा द्रव्यसप्ततिका इन छह ग्रंथोंमें 'सति हि देव द्रव्ये' यह पाठ उपलब्ध होता है / अतः देवद्रव्य द्वारा चैत्यादि समारचनकी तरह जिनबिम्ब पूजा-सत्कार-सन्मानादि हो सके, उस विषयमें सभी एकमत हैं / उपरान्त, सेनप्रश्नमें ज्ञानद्रव्य, देवप्रसादकी तरह देवपूजामें भी उपयोग हो सकता है, ऐसा स्पष्ट उल्लेख है तथा धोतियां आदि देरासरमें समर्पित किये गये हों तो वह भी अथवा उसके विक्रयसे उत्पन्न पुष्पादिका उपयोग करनेमें दोष नहीं बताया गया / वसुदेव हिंडीका पाठ द्रव्यसप्ततिका पृ. 28-29 पर दिया गया है / उसमें चैत्यद्रव्यका विनाश करनेवाला जिनबिम्बकी पूजादर्शनसे आनंदित होनेवाले भवसिद्धिक जीवोंके सम्यग्दर्शनसे लेकर निर्वाण पर्यन्तके लाभका नाश करनेवाला है, ऐसा कहा है / इसी लिए भी देवद्रव्य द्वारा जिनबिम्ब पूजा विहित होनी चाहिए ऐसा विदित होता है / ___ अब द्रव्यसप्ततिकाका पृ. 14 तथा श्राद्धविधि पृ. ८०-२में (देवगृहे पूजापि स्वद्रव्येणैव यथाशक्ति कार्या, न तु स्वगृहढौकितनैवेद्यादि विक्रयोत्थ द्रव्येण देवसत्कपुष्पादिना वा, प्रागुक्तदोषात् / उस प्रकार स्वद्रव्य द्वारा पूजा न करनेवालेको अनादर-अवज्ञादि दोष कहा है / वह गृहचैत्यके द्रव्यसे गृहचैत्य या संघचैत्यकी पूजा करनेवालेके लिए हो, ऐसा मालूम होता है / श्राद्धविधि पृ. ७९की पहली पंक्ति पर 'अतो देवदीपे लेखा न वाच्यन्ते ।.....देवश्रीखण्डेन तिलकं न क्रियते स्वललाटादौ / देवलजेन करौ न प्रक्षाल्यौ / " आदि पूजा निमित्तके सिवा हो, ऐसा मालूम होता