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________________ 234 धार्मिक-वहीवट विचार ___ पू. पंन्यासजी भद्रंकर वि. म. सा. का पूज्यपाद प्रेमसूरिजी म. सा. पर का पत्रक्रमांक - 1 सुरत, कार्तिक शुक्ला - 15 परमाराध्यपाद परमोपकारी प्रातः स्मरणीय परम गुरुदेव श्रीके चरणारविन्दमेंकोटिशः वंदनावलिपूर्वक निवेदन है कि आपश्रीका शुक्ला 12 का लिखा कृपापत्र आज प्राप्त हुआ / पढ़कर बड़ी खुशी हुई / केशवलालके साथ मुरबाडबाले मणिभाईके भाई और दूसरं थे / उन्होंने बम्बईके प्रस्तावके विषयमें स्पष्टीकरण माँगा है / उसके प्रत्युत्तरमें प्रस्तावका यह अर्थ और आशय है, ऐसा सूचित किया था / समयका विचार कर शास्त्रीय बाधा उपस्थित न हो, उस प्रकार देवद्रव्यके संरक्षणके लिए सुरक्षाकी व्यवस्थाकरनेके चिंतनमेंसे यह प्रस्ताव हुआ / उन्होंने कहा कि मुरवाडमें शिक्षणसहायक निधिमें एक हजार रूपये हैं / उस विभागके प्रमुख जैन हैं / उनके पास नगरपालिकाके अधिकारियोंने पडी रही रकमको कत्लखानेके निर्माणके लिए देनेकी माँग की और ऐसा कहा कि आपके पैसे बिना उपयोगके पडे रहे हैं अतः हमें दें और बादमें हम वापस दे देंगे / इस प्रकार वर्तमानमें पदाधिकारी मनुष्य, कत्लखाना और शिक्षण, दोनोंके बीचका भेद समझ नहीं पाते / केवल एक ही बात समझते हैं कि मनुष्यके उपयोगके लिए हर चीज आनी चाहिए चाहे फिर वह देवद्रव्यकी हो, या साधुके उपयोगकी हो / इस जातिका मानस आज राजनीतिक परिस्थितिका है / ऐसे समय हमारी मिलकतोंकी सुरक्षाके लिए साथ मिलकर किसी न एक रास्ता निकालना चाहिए, रास्ता ढूँढ निकाले ऐसे और खराब आशयसे विहीत जो भी थोडे-बहुत हों, उन्हें मार्गदर्शन देना या अपमानित करनेकी कोशिश करना, यह समझमें न आ सके, ऐसा है / फिर भी समाज पर और भी अधिक मुसीबतें आनेवाली हों, इसी कारण ऐसे सीधेसादे प्रश्नके विषयमें भी उलझन महसूस होती है / आपका अभिप्राय यथार्थ है / बम्बईके प्रत्येक विभागोंकी स्पष्टता शास्त्रीयदृष्टिसे होनी चाहिए / तभी इस शास्त्रीयमार्गकी खोज सार्थक होगी / कोई भी पक्ष खींचातानीमें फँसे यह इच्छनीय नहीं / आचरित द्रव्यको देवके साधारणमें ले जानेसे मुख्य आपत्ति यह उपस्थित की जाती है कि उससे अपने द्रव्यसे पूजा करनेके भाव उत्पन्न नहीं होंगे / और अपने द्रव्यसे पूजा न करनेवाले को पूजाका यथार्थ लाभ मिल न सकेगा। यह बात भी योग्य है / द्रव्यस्तवमें रोगीको औषध न्यायसे परिग्रहारंभरूपी
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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