________________ 4 धार्मिक-वहीवट विचार (4) ट्रस्टीके उपर कमसे कम एक सत्साधु भी गुरुके रूपमें स्वीकृत हो, जिसका मार्गदर्शन पाते रहनेसे संचालनकार्यमें किसी भी प्रकारकी गलतीकी संभावना न हो / (5) ट्रस्टी बारह व्रतधारी श्रावक होना चाहिए / कमसे कम एकाध व्रतका पालन उसे करना चाहिए / ऐसा हो न सके तो उसका जीवन दो समयके प्रतिक्रमणसे लेकर अनेक अनुष्ठानोंसे भरापूर होना चाहिए / यह भी संभव न हो तो नवकारशीका पच्चक्खाण, रात्रिभोजन और कंदमूलका त्याग, चलचित्र, टी.वी. जैसी सैक्स द्रश्योंवाली वस्तुओंका त्याग और जिनपूजा, इन पांच नियमोंका तो उसे पालन करना ही चाहिए / यदी ट्रस्टी जिनपूजा भी करता न हो तो देरासरमें चलती आशातनाओं और असुविधाओंका पता कौन लगायेगा ? (6) ट्रस्टी यथाशक्य जिनवाणी श्रवण और गुरूवंदना अवश्य करता हो / (7) ट्रस्टी प्रतिदिन कमसे कम एक घंटा ट्रस्टके कार्यालय आकरबैठता हो / सभी खाताबहियोंका ध्यानसे निरीक्षण करे, और सारा काम मुनीमके विश्वास न छोडे / (8) ट्रस्टी बननेसे पहले उसे गुरुके पास भव-आलोचना कर लेनी चाहिए / उसका प्रायश्चित्त वहन करना चाहिए और पश्चाद्वर्ती जीवन अत्यंत सदाचारी सज्जनसा होना चाहिए / विशेषतः भोजन और ब्रह्मचर्यके विषयमें उसके प्रति कोई उँगुली उठा न पाये ऐसी कक्षा बनानी चाहिए / शराब, माँस, व्यभिचार, जुआ और हिंसक व्यवसायोंका त्यागी हो / इन बातोंमें कुछ भी कहनेकी आवश्यकता ही न हो / (9) शास्त्रनीति अनुसार संचालन करनेके लिए तद्विषयक संपूर्ण मार्गदर्शन देनेवाले 'द्रव्यसप्ततिका' नामक शास्त्रका मननपूर्वक पठन करना चाहिए / उसके आधार पर ही सप्तक्षेत्र और अनुकंपा आदिकी व्यवस्था करनी चाहिए / संचालनमें देवद्रव्यको रकममें 60 प्रतिशत देवद्रव्यमें और 40 प्रतिशत साधारणमें अथवा तो उस रकम पर साधारणमें विभाजित करनेके लिए सरचार्ज होना न चाहिए / यदि उसके संचालनके साधारण बहीमें आमदनी न हो तो (1) केसरसुखड आदि और पूजारियोंके वेतन आदि बातोंकी वर्ष में एक बार भाद्रपद शुक्लप्रतिपदा जैसे दिन पर उछामनियों बुलवाकर आमदनी एकत्र करनी चाहिए / और