________________ धार्मिक द्रव्यके संचालन करनेकी योग्यता लिए कुछ त्याग करनेकी भावना प्रतिदिन लुप्त होती जा रही है / तीर्थोकी रक्षा करने जैसे अतिगंभीर मामलोंमें भी जब साधओंको शरीक होना पडे, तब ज्ञात होगा कि वर्तमानकालीन गृहस्थवर्ग, निम्नातिनिम्न निष्क्रियता और नीरसताकी कक्षा तक पहुँच गया है / ___अब तक तो मैंने केवल कटु परिस्थितिका ही वर्णन किया है, अब इस प्रकरणमें, धर्मस्थानोंमें जो ट्रस्टी बने हों उनका जीवन और विचार किस प्रकारके होने चाहिए, उसके कतिपय मुद्दे यहां पेश करता हूँ / वर्तमान समयमें आजकल ट्रस्टी बने लोगोंमें कई मुद्दोंकी अनुपस्थिति देखकर पारावार उद्वेग होता है / (1) ट्रस्टी युगानुसारी न होना चाहिए, बल्कि वह धर्मशास्त्रसूचित आज्ञाओंके प्रति वफादार-संनिष्ठ होना चाहिए / कमसे कम स्वयं जिस धर्मस्थानका ट्रस्टी हो, उस धर्मस्थानमें और उस धर्मस्थानमें की जानेवाली धर्मक्रियाओंमें, युगानुसारी किसी भी स्वार्थी प्रवृत्तिको कभी भी प्रविष्ट होने न दे / जैसे, स्वामीवात्सल्यके भोजनमें रात्रिभोजनको स्थान न हो, बर्फ का उपयोग न हो, द्विदल सेवन न किया जाय और जूठन छोडा न जाय / संभव हो तो उस धर्मस्थानके सभ्योंसे हृदयस्पर्शी प्रार्थनाएँ करे, जिससे नवरात्रि के गरबा, जन्माष्टमीका जुआ, तीर्थस्थानोंमें होनेवाली आशातनाएँ, अभक्ष्य और अपेय पदार्थोंका निर्बध सेवन, और चलचित्रोंकी विचित्र रागरागिनियोंके आधार पर गायेजानेवाले धार्मिक गीतोंका प्रसारण आदि पर प्रतिबंध हो / स्वयं भी उसका अमल करे / ... (2) स्वयं जिस ट्रस्टका ट्रस्टी हो, उस ट्रस्टका खाता (हिसाबनामा) जिस बैंकमें हो, वहाँ अपना खाता शुरु न करे / यदि ऐसा होगा तो उस बैंकमें जमा की गयी धर्मादा रकमों पर, बैंक मेनेजर उसे क्रेडिट रकम व्यवसायमें लग़ानेके लिए दे, जिससे परोक्ष रूपसे वह दोषित हो / * (3) जो उछामनी-बोलीकी घोषणा की जाय, उसकी रकम तत्काल जमा करनी चाहिए और भाद्रपद कृष्ण-पंचमी अथवा दीपावली जैसा कम मुदतका दिन निश्चित करना चाहिए, जिससे पहले दूसरोंके सभी खाताबहियोंकी रकम पूरी जमा हो जाय और उसकी पूर्तिके लिए ट्रस्टी स्वयं दाताओंके घर जाकर भी रकम जमा करानेकी बारबार प्रार्थनाएँ भी करता