________________ 200 धार्मिक-वहीवट विचार सचमच तो, उस पाठमें पुष्पादि सामग्रीका अभाव होनेसे, अन्य कार्य करनेके लिए कहा गया है / स्वद्रव्यका अभाव होने मात्रसे अन्य कार्य करनेको नहीं कहा / अत एव स्वद्रव्यसे पुष्पादि लानेकी संभवितता नहीं, संघ या अन्य किसी व्यक्ति द्वारा भी पुष्पादिकी व्यवस्था है ही नहीं, जिससे वह स्वयं पूजा कर पाये / 'स्वयं लाये गये पुष्पोंका हार बनाकर स्वयं प्रभुजी को चढाये' ऐसा भावोल्लासपूर्ण अन्य श्रावक फूल लेकर आये हैं / मतलब कि निर्धन श्रावक स्वयं भी चढा पाये उसके लिए पुष्पादि सामग्री उपल्बध नहीं / फिर भी उसको कुछ लाभ प्राप्त हो उसके लिए पुष्पगुंफन आदिका विधान उस अधिकारमें किया है / उपरान्त, यह विधान श्रावकके काययोगको प्रभुभक्तिका कार्य करनेके द्वारा सफल करनेके लिए किया है / भले ही धनसे वह श्रावक लाभ ले सकता न हो, शरीरसे तो ले ऐसी अपेक्षासे / इन फूलोंको गूंथना आदिमें उसे जैसे प्रभुभक्तिका द्रव्यस्तव (प्रभुपूजा)का लाभ प्राप्त होता है, वैसे कोई श्रावक, इस निर्धन श्रावकको दो चार फूल देकर कहे कि 'लो, इन फूलोंको चढाओ' तो क्या उन फूलोंको चढ़ानेमें उसका काययोग सफल न होगा ? किसीके फूलोंके गुंफनमें प्रभुभक्तिके भावोंका अनुभव हो और किसीके फूलोंको प्रभुजी को अर्पण करनेमें भक्तिके भावोंका अनुभव न हो, ऐसा माननेमें कोई ही प्रमाण नहीं है / उपरसे उस प्रकार तो 'स्वयंको फूल चढ़ाने का मौका मिले' आदिमें श्रावकको ज्यादा भावोल्लास प्रगट होता है, ऐसा ही प्रायः देखने मिलता है / अतः यह शास्त्रपाठ, ‘अपनी शक्ति न हो तो, दूसरोंको फूलोंका गूंफन कर देना लेकिन स्वयं प्रभुजीको अर्पण कर प्रभुपूजा न करना / ' ऐसा निर्देश नहीं करता, किन्तु 'जब प्रभुजीको चढानेके लिए स्वयंको पुष्प आदि प्राप्त न हो न सके तब भी अन्यके पुष्पोंका गुंफन कर देना आदि द्वारा शारीरिक प्रवृत्तिसे तो प्रभुभक्तिका लाभ लेना ही चाहिए' ऐसा निर्देश करनेवाला है, ऐसा मानना यह पूर्वापर अविरुद्ध, शास्त्रानुसारी योग्य अर्थघटन है। अत एव ही अभ्यंकर श्रेष्ठीके नौकरके दृष्टान्त परसे 'स्वद्रव्यसे जिनपूजा करनेमें ही लाभ होता है' ऐसा नियमको बांधनेकी जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए / भगवानके सर्वजनहितकर शासनमें अनेक प्रकारके अनुष्ठान बताये हैं / किसीको अमुक प्रकारके अनुष्ठानसे भावोल्लास प्रगटानेसे लाभ प्राप्त