________________ परिशिष्ट-१ 175 जाय ?' ऐसा प्रश्न उपस्थितकर, उसके उत्तरमें विक्रम राजाका दृष्टान्त दिया है / अत: यह प्रश्न और उसका उत्तर गुरुपूजा संबंधित गुरुद्रव्यका मार्गदर्शन नहीं, ऐसा हम कैसे कह सकते हैं ? अतः इस प्रस्तावका विरोध करनेवाला वर्ग कहता है कि 'श्राद्धजितकल्पवृत्तिमें साधु-वैयावच्चमें नगद द्रव्य देनेकी जो बात है वह विक्रमराजा द्वारा किया गया प्रीतिदान स्वरूप गुरुद्रव्यके लिए है, गुरुपूजा स्वरूप द्रव्यके लिए नहीं', यह उचित नहीं / 'द्रव्यसप्ततिका' ग्रंथकी इस बारहवी गाथाकी टीकामें कहा है कि सुवर्ण आदि गुरुद्रव्य जीर्णोद्धारमें और नये जिनमंदिरोंके निर्माण आदि कार्यमें उपयुक्त किया जाय / ___'स्वर्णादिकं तु गुरुद्रव्यं जीर्णोद्धारे, नव्यचैत्यकरणादौ च गौरवार्हेस्थाने व्यापार्यम् / ' ___ यहाँ 'आदि-शब्दसे साधु वैयावच्चका ग्रहण किया जाय, क्योंकि 'श्राद्धजितकल्प'का पाठ उस बातका स्पष्टीकरण करता है / ऐसा करेंगे तभी ही द्रव्य सप्ततिका और श्राद्धजितका पाठ, दोनोंका उचित समन्वय किया जा सकेगा / (देखें परिशिष्ट-२) . संमेलनने गुरुद्रव्यके विषयमें जो प्रस्ताव पारित किया है, उसमें देवद्रव्यमें और साधु-वैयावच्चमें दोनों स्थानोंमें ले जानेके दोनों विकल्प सूचित किये हैं / यह बात उपर्युक्त शास्त्रपाठोंसे समुचित जान पड़ती है / यदि गुरुद्रव्य केवल देवद्रव्यमें ही जा सकता है, ऐसा प्रतिपादन होगा तो 'श्राद्धजितकल्प' वृत्तिकार उसके उपभोग करनेवालेको प्रायश्चित्तके रूपमें उतनी रकम साधु वैयावच्चमें (निम्नविभागमें) उपयोग करनेके सूचन द्वारा कितने भारी दोषभागी होंगे ? _ 'गुरूपूजनके द्रव्यको यदि साधु वैयावच्चमें ले जाया जाय तो उससे .साधु-साध्वियोंको उसमें आसक्ति पैदा होनेका भयस्थान है / अत एव उसका उपयोग जीर्णोद्धार करनेमें ही किया जाना चाहिए' / ऐसा इस ठरावके विरोधियोंका मन्तव्य है / __. इसका प्रत्युत्तर यह है कि आसक्ति पैदा होनेकी संभावना निवारणार्थ ही. ठरावमें स्पष्ट सूचित है कि 'इस गुरुद्रव्यकी व्यवस्था श्रावकसंघ करेगा / ' जिस साधु या साध्वीके पास मुमुक्षु आत्मा दीक्षाग्रहण करता है, उसके दीक्षाग्रहण समयके उपकरणोंकी उछामनीकी रकम पर उस मुमुक्षुके