________________ 174 धार्मिक-वहीवट विचार ___ वहाँ यह भी कहा गया है कि यदि पूजा संबंधसे इसे गुरुद्रव्य = कहें तो 'श्राद्धजितकल्पवृत्ति के साथ उसका विरोध हो, क्योंकि वहाँ तो गुरुपूजनके द्रव्यको गुरुद्रव्य कहा है और उसके उपभोग करनेवालेको, उसका प्रायश्चित्त वहीं निर्दिष्ट किया है / इस गुरुद्रव्यका उपयोग, गौरवास्पदस्थानों में ही उचित ढंगसे करनेका द्रव्यसप्ततिकामें कहा है / इससे निश्चित हुआ कि गौरवास्पद स्थान साधु-साध्वी हैं / और उनके उपरके स्थान देव और ज्ञान है / इन सभी स्थानोंमें उसका उपयोग किया जाय / उपरान्त, 'द्रव्यसप्ततिका' में ऐसा कहा है कि इस गुरुद्रव्य का उपयोग जीर्णोद्धार, नूतन जिनालय आदि स्थानोंमें करें / यहाँ 'आदि' शब्दसे यद्यरि प्रतिमाका लेपकरण, आभूषण आदि समझे जाय, परंतु जिनकी अंगपूजामें न करने का स्पष्ट आदेश वहाँ दे दिया है अतः अब लेप आदिको 'आदि' शब्दसे गृहीत न किया जाय / अतः अब 'आदि' शब्दसे साधु- वैयावच्च ही गृहीत समझें / ऐसा होगा तो ही 'श्राद्ध-जितकल्पका' पाठका भी स्वागत माना जायेगा / इस प्रकार गुरुपूजनका धन आदि गुरुद्रव्य माना जाय या नहीं ? उस प्रश्रका उत्तर उपर निर्देशानुसार दिया गया है / आगे उसी स्थान पर दूसरा प्र उपस्थित किया गया है कि 'सुवर्ण आदिसे गुरुपूजा करनेका विधान शार में किया गया है ?' इसके प्रत्युत्तरमें कुमारपाल महाराजाका उदाहरण दिया है / वहाँ ऐसा उल्लेख है कि कुमारपाल राजा द्वारा प्रतिदिन पू. हेमचन्द्रसूरि महाराजाका 108 सतर्ण कमलोंसे गुरुपूजन किया जाता था, ऐसा 'कुमारपाल प्रबंध' आदिमें निर्दष्ट है / उसके अनुसार हालमें भी द्रव्य द्वारा पूजा जारी हो गयी है / ___श्राद्धजित हप-वृत्ति के प्रायश्चित्तके पाठमें विक्रम राजाने गुरुचरणोंमें समर्पित सुवर्णों को साधु निश्रित द्रव्यके रूपमें-गुरुद्रव्यके रूपमें-स्पष्ट बताया है / अतः उसका उपयोग साधु वैयावच्चमें हो, ऐसा फलित होता है / श्री हीर-प्रश्नोत्तरीमें 'गुरुको दव्यपूजा' कहाँ की है ? गुरुपूजा संबंधित सुवर्णादि द्रव्यको गुरुद्रव्य कहा जाय" या नहीं ? और ऐसा पूजाविधान था ? ऐसी प्रश्नोंकी हारमालामें और 'उस ' सुवर्णादिरूप द्रव्यका उपयोग कहाँ किया