________________ | (परिशिष्ट - 1) / वि. सं. 2044 के देवद्रव्य - व्यवस्थाके संमेलनीय ठराव क्रमांक 13 पर चिंतन / - पं. चंद्रशेखर विजयजी स्वद्रव्यसे सर्व प्रकारकी जिनभक्ति करनेवाले शक्ति संपन्न संघ, वैसी भावनासे भी संपन्न बना रहे, लेकिन वह यदि भावनासंपन्न न बन पाये तो निम्न विधानानुसार आचरण करें / पूज्यपाद आ. श्री. हरिभद्रसूरिश्वरजी महाराजने 'संबोध प्रकरण' ग्रन्थमें देवद्रव्यके तीन विभाग. बताये हैं : (1) पूजाद्रव्य (2) निर्माल्य द्रव्य (3) कल्पित द्रव्य (1) पूजाद्रव्य : पूजाके लिए प्राप्त द्रव्य पूजा द्रव्य कहलाता है / उसका उपयोग जिनेश्वर भगवानकी मूर्तिकी भक्तिमें किया जाता (2) निर्माल्य द्रव्य : चढ़ाया गया या समर्पित द्रव्य निर्माल्य द्रव्य कहलाता है / उस द्रव्यका उपयोग भगवानकी अंगपूजामें नहीं होता, लेकिन अलंकार आदिके उपयोगमें लिया जाता है और मंदिरके काममें भी उपयोगमें लाया जाता है / (3) कल्पित द्रव्य : भिन्न भिन्न समयमें, आवश्यकता आदिका विचार कर गीतार्थोंने चढावे (बोली)का प्रारंभ किया / उस चढ़ावेसे प्राप्त द्रव्य कल्पित द्रव्य कहा जाता है, जैसे कि पूजाका चढावा, स्वप्न आदिकी बोली, पाँच कल्याणोंकी बोली, उपधानकी मालाके चढ़ावे और उनके द्वारा समर्पित आदि / इस कल्पित देवद्रव्यका उपयोग, भगवानकी पूजाके द्रव्य, मंदिरके लिए नियुक्त मनुष्योंका वेतन, जीर्णोध्धार, नये मंदिरोंका निर्माण और मंदिरका संचालन खर्च आदि प्रत्येक कार्यमें किया जा सकता है / _ - ठरावकी पूर्वभूमिका - सभीको यह जिज्ञासा बनी रहती है कि ऐसा ठराव करनेका प्रयोजन क्या है ? उसका उत्तर इस प्रकार है :