________________ 141 चौदह क्षेत्रोंसे संबद्ध प्रश्नोत्तरी करनेकी प्रेरणा दें तो अकल्पित दानकी रकमोंसे ये विभाग समृद्ध और सम्पन्न हो जायँ / प्रश्न : (141) देवद्रव्यकी रकममें वृद्धि करनेके लिए सिनेमा, थियेटर, लग्नकी वाडी आदिका निर्माण कर उनके किराये द्वारा आमदनी इकट्ठी करनेका मार्ग उचित नहीं; लेकिन साधारण या (शुभ सर्वसाधारण) विभागकी आमदनी करनेके लिए यह सब उचित है क्या ? उत्तर : ये भी धार्मिक द्रव्यके ही विभाग है / अतः इसमें भी इस प्रकारसे आमदनी नहीं कर सकते / अधम पद्धतियों द्वारा आमदनी करनेकी इच्छा, उन संघोंको तभी उत्पन्न होगी जब उनके संघके श्रीमंतोकी धनमूर्छा अमर्याद बन गयी हो / ऐसे संघोमें विशिष्ट कोटिके पुण्यवान मुनियोंको आमंत्रण देकर * बुलाने चाहिए / जो लोग अपनी वाग्लब्धि-वाणीप्रभुत्वसे धनमूर्छाका विष उचित मात्रामें निकाल देंगे / बादमें तुच्छ पद्धतियोंकी ओर संघको ध्यान तक देना न पड़ेगा / सिनेमा या नाटकका शो करना, धर्मस्थानमें लग्नकी वाडी बनाना आदि भी अधम पद्धतिके उदाहरण हैं / प्रश्न : (142 ) संघके धार्मिक क्षेत्रोंका हिसाब किसी महात्माके सामने पेश नहीं करना चाहिए ? जिससे कोई गलती रह न पाये ? उत्तर : गोलमाल होनेकी संभावना हो और ऐसी आवश्यकता हो तो अवश्य बताया जाय / महात्माके लिए भी ऐसा शुद्धीकरण एक कर्तव्यरूप . महाराष्टके खानदेश प्रदेशमें वर्षों तक विहार करनेवाले पूज्यपाद स्व. यशोदेव सूरीश्वरजी महाराज साहब, जहाँ जहाँ गोलमाल हुई थी वहाँ प्रत्येक संघके हिसाब देखते थे / योग्य मार्गदर्शन देते थे / सभीके हिसाब साफ करवाते थे / प्रश्न : (143) देवदेवताके भंडारकी, आरती आदि उछामनीकी रकम कहाँ जमा की जाय ? उत्तर : साधारणक्षेत्रमें जमाकी जाय / / प्रश्न : (144) साधारणका फंड निर्माण करनेके लिए बारह मासके बारह श्रावक बननेकी उछामनीकी बोली बुलायी जाय ? उन्हें तत्तत् मासका 'श्रेष्ठी' पद देना पडे और तत्तत्मासमें संघकी ओरसे होनेवाले बहुमान उनके हाथों ही संपन्न कराने चाहिए या नहीं ?