________________ चौदह क्षेत्रों से संबद्ध प्रश्नोत्तरी 139 धनसे अधिक मूल्यवान सदाचारोंका पालन है / परस्परका स्नेहभाव है / अन्योन्यकी उष्मा है / यह सब मर्यादापूर्ण धनोपार्जनमें है / / एक बार धनलालसा उत्पन्न होनेके बाद, वह कहीं रुकती नहीं / अतः ज्ञानी लोगोंने इच्छाको आकाश जैसी अनन्त बतायी है / जैसे धनलाभ -पुण्योदय बलसे-अधिक हो, वैसे उसका लोभ भी बढ़ता जाता है / इस चक्करमें जीवात्मा अधिकाधिक बुरा बनता जाता है / उसकी दुर्गति निश्चित होती है / ईसीलिए ईसने कहा है कि, 'चाहे तो सूईके छेदमेंसे ऊँट गुजर सकता है, लेकिन धनवान (धनासक्त) स्वर्गमें नहीं जा सकता / ' तुलसीदासने कहा है कि, "अरब-खरबको धन मिले, उदय-अस्तको राज / तुलसी, हरिभजन बिना, सभी नरकके साज / / " नीतिपूर्ण धनोपार्जन द्वारा मनुष्यको अपना गुजारा करना चाहिए / हाँ, वह भीखमँगेकी अपेक्षा व्यवस्थित जीवननिर्वाह हो, उतनी तो नीतिसे कमाई करनी ही चाहिए / अब दानादि .धर्माचरणके लिए वह अनीतिसे धनकी कमाई करे, यह उचित नहीं / - पुनियाने अधिक धनोपार्जन किये बिना ही साधर्मिक भक्तिका धर्म जारी किया था / ... आजकल तो खुलेआम 'अनीति' चल रही है / अमर्यादित धनोपार्जन किया जाता है और उन पैसोंसे बड़े बड़े जिनमंदिरो, उपाश्रयो, तपोवनों आदिका निर्माण किया जाता है / हाँ, ऐसे अधम कक्षाके धनका असर उन स्थानों पर अवश्य होगा; लेकिन इस समय तो दूसरा कोई रास्ता सूझता नहीं / ___अनेक दृष्टान्तों द्वारा ज्ञानी लोगोंने नीतिके धनका गुणगान किया काश, आजकल तो भ्रष्टाचार ही शिष्टाचार बन पाया है / सर्वत्र ‘अनीति' का ही बोलबाला है / - गृहस्थोंकी अनीति अलग है / संसारत्यागियोंकी अनीति अलग है / गृहस्थ चोरी, धोखाघड़ी, चीजोंमें मिलावट आदि करें, उसे अनीति कही जाय /