________________ 138 धार्मिक-वहीवट विचार .. शान्तनु सेठ आर्थिक स्थितिमें बरबाद हो गये / तब उनकी धर्मिष्ठ तत्त्वज्ञानी पत्नी कुंजीदेवीने उनसे जिनदास सेठका हार चुरा लानेके लिए प्रोत्साहित किये थे / और उसी सेठके घर गिरवी रखनेकी बात कही थी / सेठने ऐसा कर, उस हारको गिरवी रखकर उससे प्राप्त रकममेंसे व्यवसाय शुरू किया / सेठकी स्थिति खा-पीकर सुखी हो जाय उतनी सुधर गयी / ' आर्यदेशका आदमी, जितना दीर्घायु हो, उतना अधिक धर्मध्यान करता है / ऐसा करनेके लिए उसे थोडा आगापीछा करना पडता है, उसे अनीति मानी न जाय / (यह सब शिष्ट-मान्य मर्यादामें ही किया जाय) / नीति तो, अतिशय बढ़नेवाले संभवित धन परकी ब्रेक है / अनीतिसे अधिक धनसंग्रह किया जा सकता है / लेकिन जब नीतिसे ही धन एकत्र करनेका निश्चय किया जाय तब अधिक धनसंग्रह नहीं हो सकता / ऐसा होने पर धनसंग्रह मर्यादित हो जाता है / इसके अनेक लाभ हैं / अधिक धनसंग्रहमें प्राप्तिकी चिन्ता, प्राप्त धनकी सुरक्षा, चोर आदिकी भीति, आश्रितोंमें व्याप्त होनेवाला भोगविलास आदिका उन्मार्ग, भोगरसकी ओर विशेष झुकाव, जीवनकी बरबादी आदि अनेक भयस्थान बने रहते हैं / मर्यादित धन ही उचित है / नदीमें कल-कल बहता पानी ही अच्छा रहता है / हजारों गाँववासियोंकी प्यास बुझाता है, लेकिन यदि वह उछलतीफाँदती बाढ़ बन जाय तो ? नपातुला नाखून अच्छा है; लेकिन वह यदि हदसे ज्यादा बढ़ जाये तो उसमें मैल भर जाता है। टक्कर लगने पर उखड़ टूट जाने पर सेप्टिक कभी हो जानेका भय बना रहता है / __ अधिक धन लाभका एक ही लाभ है / अहंकारका पोषण / जब कि उससे होनेवाले गैरलाभ अपार हैं / . अत: उन गैरलाभोंका शिकार न होनेके लिए नीतिसे ही धनोपार्जनका आग्रह रखना चाहिए / उससे प्राप्त रोटे और मठा अच्छे हैं लेकिन अनीतिके धनके गुलामजामुन बूरे हैं / अनीतिका धन घरमें आने पर गृहक्लेश होकर ही रहता है / बुद्धिभ्रंश भी निश्चित्त होता है /