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________________ 132 धार्मिक-वहीवट विचार हैं / स्वदेशीके बजाय अधिक दूध देनेवाली (थोड़े ही समयके लिए) विदेशी जर्सी, होस्टीन प्रकारकी गायोंकी पसंदगी लोग अधिक करने लगे हैं / जहाँ व्यवसायकी बात आयी, कमाईकी भावना पैदा हुई वहाँ जीवदया आदिके धर्म या संस्कृतिको टिकानेकी बातका खात्मा कर दिया जाता है / विदेशी गायें जल्द कत्लखानेमें जाय उसमें सरकारको भी ज्यादा दिलचस्पी है / भूतकालमें तो दूधको बेचना-पुत्रके विक्रयके समान पाप समझा जाता था / आज तो दोनों बिकने लगे हैं / पैसों के पीछे प्रजा पागल बनी हैं / पुण्य-पापके भेद भुला दिये गये हैं / किसी भी उपायसे रूपयोंको एकत्र करना यही पुण्य और रूपयोंका गँवाना यही पाप समझा जा रहा है / ऐसी व्याख्या बनी हुई है / एक गुजराती कविने ठीक ही कहा है : "दोढिआ खातर दोडता जीवो..... जुओ ने जीवतां प्रेत / " प्रश्न : (130) यदि गोबर गेस प्लान्टका व्यापक रूपसे उपयोग किया जाय तो पांजरापोल आदि तमाम क्षेत्रोमें लकड़ियाँ जलाना आदिका खर्च कम न हो पायेगा ? उत्तर : खर्च कम होनेकी बात गौण है / उसके विरोधमें कोई ऐसा भी कह सकता है कि इस गेस प्लान्टमें सूक्ष्म जीवोंकी हिंसा ज्यादा होती है / अतः वह उचित नहीं / (यद्यपि ऐसी विराधना होती नहीं, ऐसे गेस प्लान्टके प्रचारक असंदिग्ध भाषामें कहते हैं अथवा कोई कहता है कि खुलेमें पड़े रहते गोबरमें जो जीवोत्पत्ति होती है, उसकी घोर विराधनाकी अपेक्षा गेस प्लान्टकी विराधना बेहद मामूली है / ) समाज हितचिंतक विज्ञापित करते हैं कि जैसे जैसे गाय-भेड-बकरे आदि अनेक प्रकारके प्राणी अनुपयोगी होंगे, वैसे वैसे वे सभी आसानीसे कत्लखानोंमें जायेंगे ही / शासनको ऐसा करनेसे कोई रोक न पायेगा / लेकिन यदि इन जीवोंको उपयोगी बना दिये जाय, तो उनकी हिंसा आप ही आप बंद हो जाय / उतना ही नहीं, उनकी देखभाल भी बढ़ी-चढ़ी होने लगे / जीवरक्षाका जयजयकार हो जाय / गोबरगेस प्लान्ट यदि प्रयत्नपूर्वक सफल हो तो प्राणीमात्रकी उपयोगिता बढ़ जाय / गाय, कमजोर, बीमार या रोगिष्ठ-गोबर तो देती ही है (दूध शायद न भी दे / ) भेड़-बकरे, भंड हिरन आदि जानवर और पक्षी आदि
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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