________________ चौदह क्षेत्रोंसे संबद्ध प्रश्नोत्तरी से विविधरूपसे कमजोर जैनोंकी साधर्मिक भक्ति हो रही है / यदि इस बात पर अधिक जोर दिया जाय तो संभव हैं कि ऐसे जैन परावलंबी हो जायेंगे / कई लोग भीखमंगे हो जायेंगे / हमें अपने ही हाथों उनको कमजोर और निर्माल्य नहीं बनाने चाहिए / प्रश्न : (102) कईबार 'सही के बदले 'झूठे' साधर्मिक गैरलाभ उठा पाते हैं / उसके लिए क्या किया जाय ? उत्तर : इस विषयमें सावधानी तो पूरी बरतनी चाहिए / फिर भी ऐसा नहीं होना चाहिए कि ऐसी कल्पना से 'सही' भी मारा जाय / अपमानका भोग बने / सौ व्यक्तियोंमें अस्सी तो हंस ही मिल पायेंगे / बीस कौए भी आ पायेंगे, लेकिन 'बीस' जैसोंकी सर्वत्र संभवितता देखकर अस्सी हँसोको ' उनमें से एकाधको भी' अन्याय नहीं होना चाहिए / 'झूठा' लाभ पा जाय, उसकी अपेक्षा 'सही' वंचित रह जाय, यह बड़ा भारी दोष है / प्रश्न : (103) तमाम साधु-साध्वीलोग, उपदेशमें साधर्मिक भक्तिको ही प्रधानता क्यों न दें ? उत्तर : भूतकालकी अपेक्षा साधर्मिक भक्तिका उपदेश सविशेष दिया जाता है / उसके प्रभावके कारण, श्रीमंत जैन प्रतिवर्ष अच्छी-खासी रकम गुप्त रूपसे साधर्मिक भक्तिमें लगाते रहे हैं / लेकिन आजकल तो आसमान फट पड़ा है / वर्तमान गरीबी मानवसर्जित है - कृत्रिम है / कई लोगोंके लिए यह गरीबी लाभप्रद बनी है / अतः उत्तरोत्तर गरीबीमें बढ़ावा हो रहा है / महँगाई, गरीबी और बीमारीके चक्करमें फँसी अस्सी प्रतिशत भारतीय प्रजा स्मशानकी ओर धंसती जा रही है / प्रत्येक कौम, अपनी कौमके भाईयोंके लिए बहुत-सा काम कर रही है / जैन कौम भी इसमें पीछड़ी नहीं है / निम्न वर्गके लोग, गरीबीको मार भगानेके लिए सामूहिक रूपसे प्रयास कर थोड़ी-सी सफलता प्राप्त करते हैं / घरके सभी लोग काम करते हैं / जैनोंमें ऐसी हालत न होनेके कारण, सारा बोझ एक-दो मनुष्योंके . सर पर आता है / बड़े श्रीमंतोंको कोई तकलीफ नहीं और निम्न वर्गको