________________ हर बार बदल देता मधुवन विनय कुमार पथिक हर बार बदल देता मधुवन, हर बार नगरिया बदली है। हर बार कफ़निया के धागे, हर बार चदरिया बदली है।। हर बार सृजन, फिर पुनःमरण, फिर-फिर करता हूँ आवर्तन। हर बार चिता के अँगारे, धधके लेकर नव-परिवर्तन।। हर बार बदलता हूँ पनघट, हर बार गगरिया बदली है। हर बार बदल देता मधुवन, हर बार नगरिया बदली है।। . स्वर्गों-नरकों में अंकित है, मेरे पद-चिह्नों की छाया। जीवन-वीणा के तारों पर, है कौन गीत जो अनगाया।। हर बार बदलता हूँ सरगम, हर बार मुरलिया बदली है। हर बार बदल देता मधुवन, हर बार नगरिया बदली है।। छुट जाती है बेबस कर से, बेबस हो प्राणों की प्याली।. लेकर अनजाने देश चला, उजली कुछ, करतूतें काली।। इस पाप-पुण्य के सौदे में, हर बार बजरिया बदली है। हर बार बदल देता मधुवन, हर बार नगरिया बदली है।। बँध जाते हैं जो अनजाने, मैंने वे बँधन तोड़े हैं। कितने लोचन में घन उमड़े, हर बार बरसते छोड़े हैं।। याद नहीं किन-किन गलियों में, हर बार अटरिया बदली है। हर बार बदल देता मधुवन, हर बार नगरिया बदली है।। ये दुनिया कैसी रंग भरी, जीते जी प्यार लुटाती है। ये स्वयं शूल पर सो जाती, पर मुझको फूल बिछाती है।। 86 00 प्राकृतविद्या जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004