________________ सार्थकता सिद्ध करता है। आगम के अनुसार सम्यग्दर्शन की पात्रता चारों गतियों के भव्य जीवों को होती है, किन्तु पूर्ण संयम धारण करने और सल्लेखना धारण करने की पात्रता मात्र मनुष्य गति एवं निर्ग्रन्थ मुनिराज को होती है; अतः भव्य जीवों को सल्लेखना धारण कर देहत्याग करने का उपदेश दिया है। सल्लेखना सत्+लेखन अर्थात् काया (शरीर) एवं मनोविकार रूप कषायों को सम्यक् रूप से कृश (क्षीण) करने को कहते हैं। यह दौमुखी कार्य करती है। बाह्य रूप से शरीर को कृश करती है और आभ्यन्तर रूप से कषायों को कृश करती है और ज्ञानस्वरूप आत्मा के अकर्ता-अभोक्ता रूप में समताभाव स्थापित करती है। आत्मा का बाह्य जगत और शरीर के प्रति ममत्व छूटता है और वह अपने स्वरूप में रुचिपूर्वक स्थापित होने का प्रयास करता है। यही तो आत्मा से परमात्मा होने की प्रक्रिया है जिसमें कई भव लगते हैं। यदि इन मनुष्यभवों में संयम और सल्लेखनापूर्वक देह का परित्याग नहीं किया गया तब उत्तरोत्तर सद्गति एवं आत्मकल्याणकपरक बाह्य संयोग मिलना कठिन हो जाता है। इसके अभाव में मोक्षप्राप्ति का लक्ष्य भी पूर्ण नहीं हो पाता। चौबीस तीर्थंकरों के पूर्व भवों का वर्णन आगम में मिलता है जो यह दर्शाता है कि पूर्व के दश भवों में तीर्थंकर बननेवाला भव्य जीव किस प्रकार आत्मसाधना करता हुआ अन्तिम भव में मोक्ष चला जाता है। जब हम इन भवों का विश्लेषण करते हैं तो यह बात स्पष्ट होती है कि पूर्व भवों में इन भव्य जीवों ने कई बार राजपद, चक्रवर्ती पद आदि प्राप्त किया और गृह-त्याग कर दिगम्बरी दीक्षा धारण की और अन्त में समाधिमरणपूर्वक उत्तम गति आदि प्राप्त कर उत्तरोत्तर मोक्षलक्ष्मी के निकट आते गये। यद्यपि ऐसा प्रत्येक सिद्धालय जाने वाले भव्य जीवों और तीर्थंकरों आदि शलाकापुरुषों के जीवन में घटित होता ही है; किन्तु जब हम भगवान पार्श्वनाथ के पूर्वभवों की ओर दृष्टिपात करते हैं तब हमें समाधिमरण की विशिष्टता स्पष्ट रूप से भासित होती है। ___कमठ और मरुभूति की कहानी से सभी परिचित हैं। कमठ का जीव विश्वासघात, बैर-क्रोध प्रतिहिंसा का प्रतीक है और भगवान पार्श्व का जीव सद्विश्वास, क्षमा, शान्ति, निर्वैर, परोपकार का प्रतीक है। वज्रघोष हाथी का जीव क्रूर विषधर द्वारा डसे जाने पर शान्त परिणामपूर्वक देह-त्याग से 12वें स्वर्ग जाता है। वहाँ से रश्मिवेग राजकुमार का जन्म धारण कर जिनेश्वरी दीक्षा ग्रहण करता है। कमठ का जीव पाँचवें नरक की यात्रा करता हुआ अजगर के रूप में जन्म लेता है और वह रश्मिवेग मुनिराज को निगल जाता है। मुनिराज समाधिमरणपूर्वक देह त्यागते हैं और अच्युत स्वर्ग जाते हैं। वहाँ से अपरविदेह 74 00 प्राकृतविद्या-जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004