________________ हो सल्लेखना दिनांक 14.8.1955 से धारण की। उन्होंने जलं को छोड़ सभी प्रकार के आहार का त्याग कर दिया और शुद्धात्मा का ध्यान करते हुए 36वें दिन अर्थात् दिनांक 18.9.1955 को 'ओम् नमः सिद्धेभ्यः' शब्दोच्चारण-सहित समत्वभाव से देहत्याग कर सिद्धत्व की प्राप्ति हेतु महाप्रयाण किया। इन्द्रिय-शिथिलता एवं आयु को निकट जान. कर भूदान-प्रणेता, गीता-अध्येता सन्त विनोबा भावे ने भी सल्लेखना धारण की थी। उन्होंने वर्धा-निवासी जैन श्रेष्ठी श्री मूलचन्द जी बहुजाते को बुलाकर दीपावली - भगवान महावीर के निर्वाणोत्सव की तिथि ज्ञात की और उसी दिन देह त्यागने के संकल्पपूर्वक आहार त्याग किया और अपने आत्मस्वभाव के चिन्तन में मग्न हो गये। उनकी आत्म-साधना और संकल्प पूर्ण हुआ। सन्त विनोबा ने भगवान् महावीर के निर्वाण-दिवस दीपावली के दिन देह त्याग कर महाप्रयाण किया। ____ आत्मसाधक सन्त-महात्मा, मुनिराज, आर्यिका एवं श्रावकजन अपनी मर्यादा में सल्लेखना धारण कर देह त्याग का प्रयास करते हैं। सल्लेखना की विधि आदि का सूक्ष्म वर्णन जैनागम में सविस्तार किया है और आत्मोत्थान में उसकी महत्ता भी दर्शायी है जो अलौकिक सुख एवं सिद्धत्व की जन्म-जन्मान्तर की साधना में सहायक होती है। गृहत्यागी, मुनिराज एवं आर्यिकाएँ मृत्यु की निकट सम्भावना देखते हुए बारह वर्षीय भक्तप्रत्याख्यान समाधिमरण व्रत धारण करते हैं जिसे नियम-सल्लेखना कहते हैं। आचार्य श्री विद्यानन्दजी मुनिराज ने 16 जून, सन् 1999 को बड़ौत नगरी में नियम-सल्लेखना व्रत लेकर साधुचर्या की साधना का चरम लक्ष्य घोषित किया और आत्माराधन तथा समतापूर्वक किसी सिद्धक्षेत्र पर ही विधि-अनुसार देह-त्याग का संकल्प किया। उन्होंने यह भी निर्देश दिया कि उनके नाम से कोई तदाकार प्रतिमा, चरण-चिह्न, भवन आदि का नामकरण न किया जाय। समाधिपूर्वक मरण में भक्त-प्रत्याख्यान या नियम-सल्लेखना का बहुत महत्त्व है। भक्त-प्रत्याख्यान विधि से समाधिमरण करने हेतु दिगम्बर-अवस्था धारण करना आवश्यक है। इसे पण्डित-मरण की मान्यता दी है। पहले यह शुभ आयु बन्ध में सहायक है। यह धर्मध्यान और पीत, पद्म तथा शुक्ल लेश्या के परिणामों से होता है। आर्त्त-रौद्र ध्यान, कृष्ण लेश्या और बहु-आरम्भ-परिग्रह वाले भावों से नरक गति का बन्ध होता है। आर्त ध्यान, मायाचारी, कुटिल परिणाम तथा नील व कापोत लेश्या से तिर्यंच गति का बन्ध होता है। अल्प आरम्भ, अल्प परिग्रह, विनम्रता, मृदुता, अल्पकषाय, विशुद्ध-परिणामों से मनुष्य गति का बन्ध होता है। सम्यक्त्व, सरागसंयम, संयमासंयम, अकाम निर्जरा और बाल तप (मिथ्यात्व-सहित 72 00 प्राकृतविद्या जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004