________________ के क्षेत्र में प्रामाणिकता ही सर्वोपरि होती है। ज्ञान के मामले में मिलावट नहीं चलती। आचार्यश्री ने आगे कहा कि- अपरिग्रह आचरण से ही सत्य को सुरक्षित रखा जा सकता है तथा इसी से शासन और जनसामान्य में पवित्रता का संचार हो सकता है। सर्वाधिक प्राचीन ब्राह्मी लिपि के महत्त्व की चर्चा करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि इस लिपि का अध्ययन अध्यापन भी विश्वविद्यालयों में होना चाहिए। आचार्यश्री ने श्री अर्जुन सिंह को देश के विश्वविद्यालयों में ब्राह्मी लिपि की पढ़ाई शुरू करने की प्रेरणा भी दी। पूज्य उपाध्यायश्री निर्णय सागर और संघस्थ साधुओं ने समारोह को गरिमा प्रदान की। श्री अर्जुन सिंह ने आचार्यश्री को विनयांजलि अर्पित करते हुए कहा- मुझे आज भी वे सभी महत्त्वपूर्ण क्षणों का स्मरण है जब मुझे आचार्यश्री की प्रेरणा और आशीर्वाद मिला है। आज व्यक्तिगत मूल्यों पर लोगों का ज्यादा ध्यान है और इसीलिए सामाजिक मूल्यों के प्रति जो चेतना होनी चाहिए. वह नहीं है। सामाजिक मूल्यों की स्थापना के बिना वैयक्तिक मूल्य सारहीन हो जाते है। आचार्यश्री के निर्देशानुसार कार्य करने में व्यक्ति और समाज का कल्याण निहित रहता है। आचार्यश्री प्रेरणा एवं साहस के स्त्रोत हैं वे भारत के प्राचीन मूल्यों के प्रतीक हैं। आज ऐसे मूल्य पनप रहे हैं जो व्यक्तिपरक हैं। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैंइस तथ्य को नहीं भूलना चाहिए। उन्होंने आश्वस्त किया कि ब्राह्मी लिपि के अध्ययन की व्यवस्था विश्वविद्यालय में कराने के लिए प्रयत्न करूँगा। श्री अर्जुन सिंह एवं श्री सी.पी. कोठारी ने डॉ. सुभाष चन्द्र अक्कोळे को भारतीय प्राच्य विद्या, संस्कृति, साहित्य, दर्शन एवं ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए तिलक, माला, शॉल, गोल्ड मेडल, प्रशस्तिपत्र एवं एक लाख रुपए प्रदान कर सम्मानित किया। प्रशस्तिपत्र-वाचन डॉ. सत्यप्रकाश जैन ने किया। विशिष्ट अतिथि श्री प्रकाश आवाडे, कपड़ा-उद्योग मन्त्री महाराष्ट्र सरकार ने उत्सव पुरुष डॉ. सुभाषचन्द्र अक्कोळे को बधाई देते हुए कहा- सौभाग्य से आचार्यश्री शान्तिसागर जी का जन्मस्थान यलगुळ मेरे निर्वाचन क्षेत्र में है और सुभाष जी महाराष्ट्र से सम्बन्धित है। वस्तुतः महाराष्ट्र सन्तों की भूमि है। अक्कोळे साहब ने जैन सिद्धान्तों के प्रचार-प्रसार के साथ-साथ सामाजिक चेतना. को जागृत करने का कार्य भी किया है। आचार्यश्री शान्तिसागर जी के जीवनचरित्र पर मराठी में लिखित पुस्तक निश्चित ही समाज को नई दिशा प्रदान करेगी। समारोह की अध्यक्षता करते हुए श्री एन.के. सेठी जयपुर ने कहा- जैन समाज के सभी बड़े आयोजनों में आचार्यश्री का आशीर्वाद एवं प्रेरणा रही है। उन्होंने सरकार से जैनसमाज को अल्पसंख्यक दर्जा देने एवं पाठ्यपुस्तकों में प्रामाणिक संशोधन करने की अपील भी की। श्री प्रदीप जैन के भजनों से समारोह का शुभारम्भ हुआँ। धर्मसभा का मंगलाचरण करते हुए श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ के 208 00 प्राकृतविद्या जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004