________________ पालन कर बंकापुर में देहोत्सर्ग किया। चामुण्डराय बसदि के दक्षिण की ओर द्वितीय स्तम्भ पर शिलालेख नं. 44 {शक सं. 1043} में मार और माकणत्वे के सुपुत्र एचि व एचिगांक की भार्या पोचिकब्बे की धर्मपरायणता और अन्त में संन्यास विधि से स्वर्गारोहण का उल्लेख है। पोचिकब्बे ने अनेक धार्मिक कार्य किए। उन्होंने बेलगोल में अनेक मन्दिर बनवाये। शक सं. 1043 आषाढ़ सुदि 5 सोमवार को इस धर्मपरायण महिला का संन्यास हो जाने पर उसके प्रतापीपुत्र महासामन्ताधिपति, महाप्रचण्ड दण्डनायक विष्णुवर्द्धन महाराज के मन्त्री गंगराज ने अपनी माता के स्मारक (निषधा) का निर्माण कराया। एरडु कट्टे वसदि के पश्चिम की ओर मण्डप में दूसरे स्तम्भ पर शक सं. 1037} उत्कीर्ण लेख में कहा गया है कि सकलचन्द्र मुनि के शिष्य मेघचन्द्र विद्य हुए, जो सिद्धान्त में वीरसेन, तर्क में अकलंक और व्याकरण में पूज्यपाद के समान विद्वान् थे। शक सं. 1037 मगसिर सुदि 14 बृहस्पतिवार को उन्होंने सद्ध्यान सहित शरीर त्याग किया। उनके प्रमुख शिष्य प्रभाचन्द्र सिद्धान्तदेव ने महाप्रधान गंगराज द्वारा उनकी निषद्या निर्माण कराई।। ___ उपर्युक्त मण्डप में तृतीय स्तम्भ पर शक सं. 1044} दण्डनायक गंगराज की धर्मपत्नी लक्ष्मीपति के गुण, शील और दान की प्रशंसा की गई है। इस धर्मपरायण साध्वी महिला ने शक सं. 1044 में संन्यासविधि से शरीर त्याग दिया। वह मूल संघ, पुस्तक गच्छ, देशीगण के शुभचन्द्राचार्य की शिष्या थी। अपनी साध्वी स्त्री की स्मृति में दण्डनायक गंगराज ने यह निषद्या निर्माण करायी। उपर्युक्त मण्डप में चतुर्थ स्तम्भ पर {शक सं. 1042} चामुण्ड नाम के किसी प्रतिष्ठित और राजसम्मानित वणिक की धर्मवती भार्या देमति व देवमति की प्रशंसा है। दान-पुण्य के कार्यों में जीवन व्यतीत कर इस महिला ने शक सं. 1042 फाल्गुन वदि. 11 बृहस्पतिवार को संन्यास विधि से शरीर त्याग किया। यह महिला शुभचन्द्र सिद्धान्तदेव की शिष्या थी। गन्धवारण वसदि के प्रथम मण्डप में एक स्तम्भ पर शक सं. 1068} किसी वल्ल च'वल्लण नामक धनवान् पुरुष के संन्यास विधि से शरीर त्याग करने पर उसकी माता और भगिनी द्वारा उसकी स्मृति में एक पट्टशाला वाचनालय} - स्थापित करने और उसके चलाव के लिए कुछ जमीन दान करने का उल्लेख है। / उसी मण्डप में द्वितीय स्तम्भ पर शक सं. 1041} में कहा गया है कि महाधर्मवान्, कीर्तिवान् और बलवान् दण्डनायक बलदेव और उसकी धर्मपत्नी वाचिकव्वे का पुत्र सिंगमय हुआ, जो उदारचरित और गुणवान् था। उसकी धर्मपत्नी का नाम सिरियदेवी था। सिंगिमय ने समाधि धारण कर स्वर्गलोक प्राप्त प्राकृतविद्या जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004 00 133