________________ 122 मृत्यु की दस्तक मृत पितरों का जल से तर्पण करते हैं और मृत पितरों के निमित्त उस तिथि में ब्राह्मण• भोज कराते हैं। 6. पार्वण श्राद्ध - यह श्राद्ध पितृपक्ष में मुख्य रूप से तीर्थ स्थलों पर किया जाता है। इसमें क्रम से द्वादश-दैवत-पार्वण श्राद्ध - पिता, पितामह, प्रपितामह, माता, पितामही, प्रपितामही, मातामह, प्रमातामह, वृद्ध प्रपितामह, मातामही, प्रमातामही, वृद्धप्रमातामही के लिये श्राद्धकर्म किया जाता है। इसी प्रकार कुछ स्थानों पर षोडश् दैवत-पार्वण श्राद्ध का भी विधान है। 7. नन्दीमुख श्राद्ध - हिन्दू समाज में पाणिग्रहण (विवाह) एवं यज्ञोपवीत आदि परम पावन कार्यों से पूर्व मृत पितरों से आशीर्वाद प्राप्त करने का विधान है। ये श्राद्ध इसी उद्देश्य से किये जाते हैं। इस श्राद्ध का संकल्प लेने के उपरांत वंश में मृत्यु हो जाने पर भी यज्ञोपवीत एवं विवाह संस्कार नहीं रुकता है। सनातन (हिन्दू) समाज में व्यक्ति पूजा-पाठ, दर्शन, तीर्थ अनुष्ठान जैसे धार्मिक कर्मों को अपने परिवार एवं स्वयं की समृद्धि एवं कल्याण के लिये करता है। जबकि दूसरी ओर मृत्यु के पश्चात् मृतक के पुत्रों द्वारा जो विभिन्न प्रकार के श्राद्ध किये जाते हैं वे सिर्फ पितरों की मुक्ति के लिये किया जाता है, जिनसे प्रायः वह मिला भी नहीं होता है। भारतीय समाज में मृत्यु के ये संस्कार वंश-परम्परा एवं पारिवारिक एकता का विलक्षण आधार प्रस्तुत करते हैं। दशगात्र श्राद्ध के दसवें दिन जब मृतक के परिजन क्षौर कराते हैं उस समय सभी पुरुष सदस्यों के चेहरे तथा सिर केशविहीन होने के कारण, एक जैसे लगते हैं। उन्हें एक साथ देखकर ऐसा लगता है मानो शोक साक्षात् प्रकट हो गया हैं। लेकिन पारिवारिक एकता उस विपत्ति को भी आत्मसात कर लेती है। मृत्यु के पश्चात् बारह दिनों तक संवेदना प्रकट करने वाले, जो भिन्न-भिन्न जातियों के होते हैं, मृतक के परिजनों को धैर्य प्रदान करते हैं जो उसके शोक को शमित करता है। श्राद्धकर्म के समय कर्ता जिस स्थान पर श्राद्ध करता है सर्वप्रथम उस स्थान के स्वामी के पूर्वजों को श्राद्धान्न अर्पित करता है, फिर अपने वंश के ऐसे मृतकों को जिनकी मृत्यु किसी दुर्घटनावश या अकाल मृत्यु हुई हो उन्हें श्राद्धान्न समर्पित करने के पश्चात् ही मृतक का श्राद्ध करता है। इस प्रकार इहलौकिक एवं पारलौकिक एकता मृत्यु के कर्मकाण्ड के द्वारा सिद्ध होती है। पितरों से सम्बन्धित पर्व (1) मकर संक्रान्ति - इस पावन दिवस पर पितर प्रेतत्त्व से छूटे हुए पूर्वज के निमित्त तिल,चावल, दाल, कम्बल आदि वस्तुओं के दान का विधान है। अगहन महीने में धान की फसल तैयार होने पर लोग अन्न सर्वप्रथम अपने पितरों को अर्पित करना चाहते