________________ ज्योतिष-शास्त्र में मृत्यु-विचार - पंडित त्रिलोकनाथ मिश्र प्राचीन विद्वानों के अनुसार ज्योतिष विद्या के अठारह प्रवर्तक माने गये हैं। सूर्य, ब्रह्मा, व्यास, वशिष्ठ, अत्रि, पराशर, कश्यप, नारद, भृगु, मरीचि, मनु, अंगिरस, लोमश, पोलिस, च्यवन, पवन, मनु और शौनक। __ ज्योतिष के दो प्रमुख विभाग हैं। एक गणित और दूसरा फलित / इन दोनों का वही सम्बन्ध है जो शब्द और अर्थ का। सूर्य सिद्धान्त ज्योतिष का आर्ष ग्रन्थ है। ज्योतिष के अनुसार मृत्यु के कई प्रसंग और पक्ष हैं। शुभ और अशुभ ग्रहों की स्थिति के अनुसार मृत्यु का विचार किया जाता है। जैसे जातक (बालक) के जन्म के अनुसार माता और पिता के मृत्यु का समय, स्त्री की मृत्यु, संतान की मृत्यु, ग्रह-स्थिति के अनुसार अल्पायु का विचार, मारकेश का विचार, मृत्यु-समय के लग्न का ज्ञान, मृत्यु का स्थान, ग्रहयोगानुसार मृत्युकारण, ग्रहों से मृत्युकारी रोगों का अनुमानः। इसी क्रम में इनका संक्षेप में विचार प्रस्तुत किया जा रहा है। जातक के जन्म-अनुसार उसके माता-पिता की मृत्यु के समय के अनेक योग होते हैं। उदाहरणस्वरूप एक योग प्रस्तुत किया जा रहा है - जन्म काल में चन्द्रमा से चतुर्थ स्थान में पापग्रह (सूर्य, मंगल, शनि, उपलक्षण से राहु तथा केतु) हो और उसके साथ शुभ ग्रह न हो या उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो जातक की माता अल्पकाल में ही मृत्यु को प्राप्त होती है।