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________________ मृत्यु की अवधारणा - एक अनुचिन्तन 95 7. वचनबल प्राण 8. मनबल प्राण 9. श्वासोच्छवास बल प्राण 10. आयुष्य बल प्राण जब आत्मा और शरीर के बीच सम्बन्ध स्थापित होता है तब प्राणों की उत्पत्ति होती है। जैसे ही इन दोनों के बीच सम्बन्ध-विच्छेद होता है प्राणों का अन्त हो जाता है। वह स्थिति मृत्यु की होती है। (ख) देहान्त - मृत्यु को देहान्त भी कहते हैं क्योंकि मृत्यु के फलस्वरूप देह नष्ट हो जाती है। प्रायः प्राणान्त और देहान्त दोनों ही मृत्यु के लिए व्यवहार में आते हैं किन्तु दोनों में अन्तर यह है कि पहले प्राणान्त होता है और उसके बाद देहान्त होता है। प्राणान्त के बाद शरीर रहता है जिसे जला दिया जाता है अथवा दफना दिया जाता है। देहान्त होने के बाद प्राणान्त होता है, ऐसा नहीं कहा जा सकता है। (ग) महाप्रयाण - महाप्रयाण को महाप्रस्थान भी कह सकते हैं। छोटा प्रयाण या प्रस्थान करने वाला व्यक्ति लौटकर आ जाता है किन्तु मृत्यु रूप प्रस्थान करने पर कोई लौटता नहीं, वह सदा-सदा के लिए अपनों से दूर हो जाता है। इसलिए मृत्यु को महाप्रयाण कहते हैं। लेकिन व्यवहार में देखा जाता है कि इस शब्द का उपयोग सिर्फ महापुरुषों की मृत्यु के लिए होता है। साधारण व्यक्ति के मरने पर महाप्रयाण शब्द का व्यवहार नहीं होता है। इसका एक कारण हो सकता है कि साधारण व्यक्ति जब मरता है तो वह अपने सगे-सम्बन्धियों से अलग जरूर हो जाता है परन्तु पुनर्जन्म के कारण वह पुनः किसी-न-किसी रूप में इस संसार में लौटकर आ जाता है। किन्तु संत-महात्मा जब मरते हैं तो यह समझा जाता है कि उन्हें मोक्ष प्राप्त हो गया और संसार में आना-जाना छूट गया / अतः उन लोगों की मृत्यु के लिए महा प्रयाण व्यवहृत होता है। (घ) विदेह-मुक्ति - विदेह-मुक्ति भी मृत्यु ही है। किन्तु इस शब्द का व्यवहार साधकों एवं तपस्वियों की मृत्यु के लिए होता है। क्योंकि विदेह-मुक्ति, जिसे पूर्ण मोक्ष कहते . . हैं, त्यागी, तपस्वी, सन्त, महात्मा ही प्राप्त करते हैं। सामान्य लोगों की मृत्यु को विदेह-मुक्ति नहीं कह सकते हैं। (ड) चिरनिद्रा - सामान्य ढंग से जब कोई सोता है तब तुरन्त अथवा देर से जग जाता ___ है लेकिन मृत्यु-रूपी निद्रा की स्थिति में आने के बाद वह जाग नहीं पाता, वह हमेशा के लिए सो जाता है। इसलिए मृत्यु को चिरनिद्रा भी कहते हैं। (च) स्वर्गवास - “स्वर्गवास” शब्द मृत्यु के लिए सामान्यतया व्यवहार में आता है। मरने के बाद स्वर्ग अथवा नरक की प्राप्ति तो व्यक्ति के कर्मों पर आधारित होती है जो 2 जैनधर्म अहिंसा. डॉ. बशिष्ठ नारायण सिन्हा, पृ. 1411
SR No.004376
Book TitleMrutyu ki Dastak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
PublisherD K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
Publication Year2005
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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