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________________ श्रीनन्दिसूत्रम् ] [33 दुवालसंगं गणिपिडगं अणागए काले अणंता जीवा श्राणाए विराहित्ता चाउरतं संसारकंतारं अणुपरिट्टिस्संति 4 / इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं तीए काले अणंता जीवा याणाए पाराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं वीईवइंसु 5 / इन्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं षडपन्नकाले परित्ता जीवा बाणाए थाराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं वीईवयंति 6 ।इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं यणागए काले अणंता जीवा प्राणाए श्राराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं वीईवइस्संति 7 / इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं न कयाइ नासी न कयाइ न भवइ न कयाइ न भविस्सइ, भुविं च भवइ ध भविस्सइ अ, धुवे निथए सासए अक्खए अबए अवट्ठिए निच्चे 8 / से जहा नामए पंचत्थिकाए न कयाइ नासो न कयाइ नत्थि (न भवइ) न कयाइ न भविस्सइ, भुवि च भवइ अ भविस्सइ अ, धुवे नियए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए निच्चे, एवामेव दुवालसंगे गणिपिडगे न कयाइ नासी न कयाइ नत्थि न कयाइ न भविस्सइ, भुविं च भवइ श्र भविस्सइ अ, धुवे निअए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए निच्चे 1 / से समासयो चउन्विहं पन्नतं तं जहा-दव्यो, खित्तयो, कालयो, भावो / तत्थ दव्वयो णं सुधनाणी उवउत्ते सब दवाई जाणइ (ण) पासइ, खित्तयो णं सुथनाणी उवउत्ते सव्वं खेत्तं जाणइ (ण) पासइ, कालों णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वं कालं जाणइ (ण) पासइ, भावो णं सुअनाणी उवउत्ते सव्वे भावे जाणइ (ग) पासइ 10 // सू० 50 // अक्खरसन्नी सम्मं साइन खलु सपजवसिग्रं च / गमियं अंगपविट्ठ सत्तवि एए सपडि. वक्खा // 1 // पागम सत्थग्गहणं जं बुद्धिगुणेंहिं अट्ठहिं दिलृ / विति सुअनाण लंभं तं पुव्व-विसारया धीरा // 2 // सुस्सूसइ 1 पडिपुच्छइ 2 परोइ (सोइ) 3 गिराहइ अ 4 ईहए 5 / यावि तत्तो अपोहए वा 6 / धारेइ 7 करेइ वा सम्म 8 // 3 // मूयं हुँकारं वा बाढकार पडिपुच्छ
SR No.004375
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1976
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nandisutra, & agam_anuyogdwar
File Size17 MB
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