________________ [ श्रीमदावमसुधासिन् / शदशमी विभाग // अथ नमस्कार नियंक्तिः // - अप्पगंथमहत्य बत्तीसदोसविरहियं जं च | लक्खणजुत्तं सुतं अट्ठहि य गुणेहि उववेयं // 880 // अलियमुवघायजणयं निरत्थयमवत्थयं बलं दुहिलं / निस्सारमधियमूणं पुणरुत्तं वाहयमजुत्तं // 889 // कमभिगणवयणभिगणं विभत्तिभिन्नं च लिंगभिन्नं च। अणभिहियमपयमेव य सभावहीणं ववहियं च॥८८२॥ कालजतिच्छविदोता समयविरुद्धं च वयणमितं च / प्रत्थावत्तीदोसो य होइ असमासदोसो य // 883 // उवमारूवगदोसाऽनिद्देस पदस्थसंघिदोसो य / एए उ सुत्तदोसा बत्तीसं होंति णायया // 884 // निद्दोंसं सारवन्तं च हेउजुत्तमलंकियं / उवणीयं सोवयारं व मियं महुरमेव य // 885 // अप्पवखर नदिद्धं सारखं विस्मयोमुहं / अत्थोभमणवज्ज च सुत्तं सवराणु भासियं // 86 // उप्पत्ती निवखेवो' पर्य' पयत्थों' परूषणा वत्थु"। अवखेव पसिद्धि कमो' "पयोयणफलं' नमोकारो // 887 // उप्पन्नाऽणुप्पन्नो इत्थ नयाऽऽइनि(या नेगमरसऽणुप्पन्नो / सेस णं उपन्नो जइ कत्तो ?, तिविहसाभित्ता // 888 // समुट्ठाण-वायणालद्धिश्रो य पढमे नयत्तिए तिविहं / उज्जुसुय पढमवज्ज सेसनया लद्धिमिच्छतेि // 886 // निन्हाइ दब भावोवउत्तु जे कुन संमदिट्ठी उ। नेवाइयं पयं दबभाव-संकोयणपयत्यो // 860 // दुविहा परूवणा छप्पया य नवहा य छप्पया इणमो। किं कस्स केण व कहि किचिरं का विहो व भवे // 811 // किं ? जीवो तपरिणयो पुवपडियनयो उ जीवाणं / जीवस्स व जीवाण व पडुच्च पडिवजमाणं तु // 812 // नाणावरणिजस्स य दंसणमोहस्स तह खयोवसमे / जीवमजीवे अट्ठसु भंगेसु उ होइ सम्पत्य // 813 // उवयोग पडुच्चंतोमुहुत्त लद्धीइ होइ उ जहन्नो / उकोसठिन छावट्ठि सागरारिहाइ पंचविहो // 814 // संतपयपरूवणया' दव्वपमाणं च खित' फुसणा' य। कालो' थ अंतरं' भाग भाव अप्पाचहुँ चेव // 15 // संतपयं पडि.