________________ भीमदापरयकरत्रम् / अध्ययनं 1] . [ 5 ख्वं तु // 574 // कालेण असंखेणवि संखातीताण संसईणं तु / मा संसयवोच्छित्ती न होज कमयागरणदोसा // 575 // सम्वत्थ अविसमतं रिद्धिविसेसो अकालहरणं च / सब्बरणुपच्चयोवि य अचिंतगुणभूतियो जुगवं // 576 // वासोदयस्स व जहा वराणादी होंति भायणविसेसा / सब्वेसिपि सभासा जिणभासा परिणमे एवं // 577 // साहारणासवत्ते तदुवयोगो उ गाहगगिराए / न य निधिजइ सोया किढिवाणि-यदासियाहरणा // 578 // सव्वाउयपि सोया खवेज जइ हु सययं जिणो कहए। सीउराहखुधिवासा-परिस्समभए अविगणेतो॥ 571 // वित्ती उ सुवराण त्सा वारस पद्धं च सयसहस्साई / तावइयं चित्र कोडी पीतीदाणं तु चक्किस्स // 580 // एवं चेत्र पमाणं णवरं रययं तु केतवा दिति / मंडलियाण सहस्सा पीईदाणं सयसहस्सा // 581 // भत्तिविहवाणुरूवं अण्णेऽवि य देति इभमाईया। सोऊण जिणागमणं निउत्तमणि-श्रोइएसुवा // 582 // देवाणुयत्ति भत्ती पूया थिरकरण सत्तणुकंपा / सायोदय दाणगुणा पभावणा चे तित्थस्त // 583 ॥राया व रायमचो तस्सऽसई पउरजणवो वाऽवि / दुबलि-खंडियवलि-डिय-तंदुलाणाढगं कलमा // 584 // भाइयपुणाणियाणं अखंडफुडियाण फलगतरियाणं / कीरइ बली सुरावि य तत्थेव बुहंति गंधाई // 585 // बलिपविसण-समकालं पुबहारेण गति परिकहणा / तिगुणं परयो पाडण तस्सद्धं अवडियं देवा // 586 // श्रद्धद्धं श्रहिवइणो यवसेसं हवइ पागयजणस्स / सव्वामयप्पसमणी कुप्पइ णऽराणो य छम्मासे // 587 // खेयविणोयो सीसगुणदीवणा पञ्चो उभययोऽवि / सीमायरिय-कमोऽवि य गणहरकहणे गुणा होंति // 588 / / राग्रोवणीय-सीहासणे निविट्ठो व पायवीटंमि / जिट्ठो अन्नयरो वा गणहारी कहइ बीयाए // 581 // संखाईएऽवि भवे साहइ जं वा परो उ पुच्छिज्जा। ण य णं अणाइसेसी विश्राणई एस छउमत्थो / 510 // तं दिव्वदेवयोसं