________________ गोमती ओपनियुक्तिः ] (भा०) गुरुदोण व पिहिअं सयं व गुरुयं हवेज जं दबं / उक्खेवे निवखेो कडिभंजण पाय उवरिं वा // 259 // महल्लेण देहि मा डहरएण भिन्ने अहो इमो लुडो / उभए एगतरवहो दाहो अच्चुण्ह एमेव // 260 // पहुगहणे अचियत्त वोज्छेओ तदन्नदव्व तस्स वावि / छकायाण य वहणं अइमत्त तंमि मत्तंमि // 261 // तिविहो य होइ कालो गिम्हो हेमंत तह य वासासु / तिविहो य दायगो खलु थी पुरिस नपुंसयो चे // 483 // एकिकोवि अतिविहो तरुणो तह मज्झिमो य थेरो य / सीयतणुयो नपुंसो सोम्हित्थी मन्भिमो पुरिसो // 484 // पुरकम्मं उदउल्लं ससिणिद्धं तंपि होइ तिविहं तु / इकिवपि य तिविहं सञ्चित्ताचित्तमीसं तु // 485 // श्राइदुवे पडिसेहो पुरयो कय जं तु तं पुरेकम् / उदउल्लबिंदुसहियं ससिणि द्वे मन्गणा होइ // 486 // ससिणिद्धपि य तिविहं सचित्ताचित्तमीसगं चेव / अच्चित्तं पुण ठप्पं अहिगारो मीसञ्चित्ते // 487 // पवाण किंचि अव्वाणमेव किंचिच्च होअणुव्वाणं / पाएण हि यं (i) स.वं एक्ककहाणी य वुड्डी य // 488 // सत्तविभागेण करं विभाइत्ताण इथिमाईणं / निच्चुन्नयइयरेविय रेहा पव्वे करतले य // 481 // जाहे य उन्नयाई उव्वाणाई हवंति हाथरस / ताहे तल पवाणा लेहा पुण होतऽणुव्वाणा // 410 // तरुणित्थि एकभागे पवाणे होइ गहण गिम्हासु / हेमंते दोसु भवे तिसु पवाणेसु वासासु // 411 // एमेव मज्झिमाए अाढत्तं दोसु आयए चउसु / तिस श्रादत्तं थेरी नवरि ठाणेसु पंचसु उ // 412 // एमेव होइ पुरिसो दुगाइछट्ठाण-पजवसिएसु / अपुमं तु तिभागाई सत्तमभागे अवसिते उ // 413 // दुविहो य होइ भावो लोइय लोउत्तरो समासेणं / एकिकोवि य दुविहो पसत्थश्रो अषसत्यो य // 464 // सझिलगा दो वणिया गामं गंतूण करिसणारंभो। एगस्म देहमंडणबाउसिया भारिया अलसा / / 415 / / मुहधोवण दंतवणं श्रद्दागाईण कल्ल श्रावासं / पुबराहकरणमप्पणः उक्कोसपरं च मज्झराहे