________________ श्रीमता ओषनिपूक्तिः [ 15 निसिए / राओ य पुन्वमणिभं तुर्यट्टणं कप्पई न दिवा // 155 // अडाणप. रिस्संतो गिलाणवुड्डा अणुण्णवेत्ताणं / संथारुत्तरपतो अत्थरण निवजणाssलोग // 156 // उवगरणाईयाणं गहणे निक्खेवणे य संकमणे / ठाण निरि. पखपमन्त्रण का पडिलेहए उपाहिं // 157 // उवगरण वत्थपाए पत्थे पडि. लेहणं तु वोच्छामि / पुव्वण्हे अवरण्हे मुहणंतगमाइ पडिलेहा // 158 // . उड्ड थिरं अतुरियं सव्वं ता वत्थ पुव पडिलेहे। तो बिइग्रं पष्फोडे तइयं च पुणो पमज्जेजा // 264 // ___(भा०) वत्थे काउड्ढुमि अ-परवयणठिो गहाय दसियते / तं न भवति उक्कुडुओ तिरिअं पंहं जह विलित्तो // 159 // घेनु थिरं अतुरिअं तिभाग वुद्धोय चक्खुणा पेहे / तो बिइयं पप्फोडे तइयं च पुणो पमज्जेजा // 160 // __ अणचाविधं अवलियं अणाणुबंधि अमोसलिं चेव / छप्पुरिमा नर खोडा पाणी पाणपमजणं // 265 // - (भा०) वत्थे अप्पाणमि अ चउहा अगञ्चाविअं अवलिभं च / अणुबंधि निरंतरया तिरिउड्डह य घट्टणा मुसलो // 161 // . पारमडा सम्मदा वज्जेयवा य मोसली तइया / पप्फोडणा चउत्थी विक्खित्ता वेइया छट्ठा // 266 // .... (भा०) वितहकरणे च तुरिअं अण्णं अण्णं व गेण्हणाऽऽरभडा / अंतो व होज वोणा निसियण तत्थेव संमदा // 162 // मोसलि पुबुद्दिहा पप्फोडण रेणुगुडिए चेव / विकग्वेवं तुक्षेवो वेइयपणगं च छद्दोसा // 163 // .. __पसिदिल पलंब लोला एगामोसा अणेगरवधुणा / कुणइ पमाणपमायं संकियगणणोवगं कुन्जा // 267 // (भा०) पसिढिलमघणं अतिराइयं च विसमगहणं व कोणं वा / भूमीकरलोलणया कणगहणेकआमोसा // 14 // धुणणा तिण्ह परेणं बहूणि वा घेत्तु एक्कई धुणइ / खोडणपमन्त्रणासु य संकियगणणं करि पमाई // 165 // अणूणाइरित्तपडिलेहा, अविवच्चासा तहेव य / पढमं पयं पसत्थं, सेसाणि अयप्पसत्याणि // 268 //