________________ 162 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः बादशमो विभागः एगस्थ होइ भतं विइमि पडिग्गहे दवं होइ / पाउग्गायरियाई मत्ते विइए उ संसत्तं // 251 / / जइ रित्तो तो द्रवमत्तगंमि पढमालियाए करणं तु / संसतगहण दबदुल नहे य तत्थे। जं पनं // 252 // अंतरपल्ली. गहियं पढमागहियं व सव्व भुजेजा। धुवलंभखडीयं व जं गहियं दोसिणं वावि // 253 // दरहिंडिए व भाणं भरियं भोचा पुणोवि हिंडिजा। कालो वाइकमई मुंजेजा अंतरा सव्वं // 254 // एसो उ विही भणियो तमे वसंताण होई खेतमि / पडिलेहणं पे इत्तो वोच्छं अप्पक्खरमहत्थं // 255 // दुविहा खनु पडिलेहा छउमत्थाणं च केवलीणं च / अभिर बाहिरिया दुविहा दब्वे य भावे य // 256 // पाणेहि उ संसत्ता पडिलेहा होइ केवलीणं तु / संसत्तमसंमत्ता छउमत्थाणं तु पडिलेहा // 257 // संसजइ धुवमेयं अपेहियं तेण पुत्र पडिलेहे / पडिलेहियपि संसजइत्ति संसत्तमेव जिणा // 258 // नाऊण वेयणिज्ज श्रइबहुयं ग्राउ यं च थोत्रागं / कम्म पडिलेहेउं वच्चंति जिगा समुग्याय // 251 // संसत्तमसंसत्ता छउमत्थाणं तु होइ पब्लेिहा। चोयग जह बारक्खी हिंडिताहिंडिया चेव // 260 // तित्थयरा रायाणो साहू या क्खि भंडगं च पुरं / तेणसरिसा य पाणा निगं व रयणा भवो दंडो॥ 261 // किं कय किं वा सेसं किं करणिज्जं तवं च न करेमि ? / पु.वावरत्तवाले जागरयो भावपडिलेहा // 262 // ठाणे उदगरणे या डिलउवथंभ-मग्गपडिलेहा / किमाई पडिलेहा पुबरहे चेव अवरराहे // 23 // (भा०) ठाणनिसोयतुयट्टण-उवगरणाईण गहणनिक्खेवे / पुव्वं पडिलेहे चक्खुणा उ पच्छा पमज्जेजा // 151 // उड्डनिसोयतुयट्टण ठाणं तिविहं तु होइ नायव्वं / उड्डू उच्चाराई गुरुमूलपडिक्कमागम्म // 15 // पवखे उस्सा लाई पुरतो अविणीय मग्गो वाऊ / निक्खमपवेसवजण भावासपणे गिलागाई // 153 // भारे वेयणखमगुण्ह-मुच्छपरियावछिंदणे कलहो। अवाबाहे ठाने सागारपमजणा जयणा // 154 // संडास पमजित्ता पुणोवि भूमि पमा..आ