________________ श्रीमदावश्यकसूत्रम् :: अध्ययनं 6 ] [ 135 दव्वे भावे य दुहा पञ्चक्खायव्ययं हवइ दुविहं ! दब्बंमि अ अप्तणाई अन्नाणाई य भावंमि // 31 // सोउं उबट्ठियाए विणीयऽवविखत्ततदुवउत्ताए। एवंविहारिसाए पचक्खाणं कहेयव्वं // 32 ॥याणागिझो अत्थो प्राणाए चेत्र सो कहेय वो। दिट्ठांति उदिट्ठता कहणविहि विराहणा इयरा // 33 // पञ्चक खाणस्त फलं इहपरलोए अ होइ दुविहं तु / इहलोइ धम्मिलाई दामनगमाई परलोए // 34 // पञ्चक्खाणमिणं संविऊण भावेण जिणवरुदिट्ट पत्ता अणंतजीवा सासयसुक्र लहुमुक्ख।। 35 // नायंमि गिरिहयब्वे अगिगिहयव्वंमि चेत्र अत्थंमि / जहयवमेव इह जो उबएमो सो नो नाम // 36 // सव्वेसिपि नयाणं बहुविहात्तव्ययं नितामित्ता / तं सबनयविसुद्धं जं चरणगुणट्ठियो.साहू // 1637 // // इति प्रत्याख्यानाव्ययनम् // 3 // // इति सिरिभद्दयाहुसाम विरइया आवस्सय-निज्जुत्ती समत्ता / // इति श्रीमदावश्यकसूत्रम् // - (ग्रन्थाग्रं 2200)