________________ [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / द्वादशमी विभाग // 13 // भणिय दसविहमेयं पञ्चक्खाणं गुरुवएसेणं / कयमचक्खाणविहिं इत्तो बुच्छं समासेणं // 14 // अाह जह जीवघाए पञ्चक्खाए न कारए अन्नं / भंगभयाऽसणदाणे धुव कारवणे य नणु दोसे // 15 // नो कयपञ्चक्खाणो पायरियाईण दिज असणाई। न य विरइपालणायो वेयावच्चं पहाणयरं // 16 // नो तिविहं तिविहेणं पञ्चक्खइ अन्नदाणकारवणं / सुद्धस्स तो मुणिणो न होइ तभंगहेउत्ति // 17 // सयमेवऽणुपालणियं दाणुवएसो य नेह पडिसिद्धो / ता दिज उवइमिज व जहा समाहीइ अन्नेसि // 18 // कयपञ्चक्खागोविय थायरियगिलाणबालवुहाणं / दिजासणाइ संते लाभे कयवीरियायारो॥ 1511 // (भा०) संविग्गअण्णसंभोइयाण देसेज सङ्कगलाई / अतरंतो वा संभो. इयाण देजा जहसमाही // 244 // सोहो पञ्चक्खाणस्स छव्विहा समणसमयकेहिं / पन्नता तित्थयरेहिं तमहं बुच्छं समासेणं // 245 // सा पुण सहहणा जाणणा य विणयाणुभासणा चेव / अणुपालणाविसोही भावविसोही भवे छट्ठा // 1600 // (भा०) पञ्चकरखाणं स वन्नुदेसिज जहिं जया काले / तं जो सद्दहई नरोतं जाणसु सद्दहगसुद्धं // 246 // पञ्चरखागं जाणइ कप्पे जं जंमि होइ' कायब्बं / मूलगुणे उत्तरगुणे तं जाणसु जाणणासुद्धं // 247 // किइकम्मरस विसोही पउजई जो अहोणमइरित्तं।मणवयणकायगुत्तो तं जाणमु विणयओ सुद्धं // 248 // अणुभासइ गुरुवयणं अक्खरपयवंज गेहिं परिसुद्धं / पंजलिउडो अभिनुहो तं जाणसु (जाणऽणुभासणा) सुडं // 249 // कंतारे दुमिरखे आयं के वा महई सप्पन्ने / जं पालियं न भग्गं तं जाणसु पलणा (जाणऽणुपालणा) सुद्धं // 20 ॥रागेण व दोसेण व परिणामेण व न दूसियं जं तु। तं खलु पञ्चक्खाणं भावविसुद्ध मुणेयव्वं // 251 // एएहिं लहिं ठाणेहिं पञ्चवखाणं न दृसियं जं तु / तं सुद्धं नायव तप्पडिघव खे असुद्धं तु॥२५२॥ थंभा कोहा अणाभोगा अणापुच्छा असंतई / परिणामओ असुद्धो अवाउ जम्हा विउ पमाणं // 2:3 // // इति भाष्यम् // पचवखाणं समत्तं /