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________________ गिहिणोवि सुहाई विभजमाणा शह दुविहं ए गोमदावर कम्त्रम् / अध्ययनं 6 ] / 120 (भा०) पाणिवहमुसावाए अदत्तमेहुणपरिग्गहे चेव। समणाणं मूलगुणा तिविहंतिविहेण नायव्वा // 243 // सावयधम्मस्स विहिं वुच्छामी धीरपुरिसपनत्तं / जं चरिऊण सुविहिया गिहिणोवि सुहाई पावंति॥१५७०॥ साभिग्गहा य निरभिग्गहा य श्रोहेण सावया इपिहा / ते पुण विभज्जमाणा अट्टविहा हुँति नायबा // 71 // दुविहतिविहेण पढमो दुविहं दुविहेणं बीयत्रो होइ / दुविहं एगविहेणं एगविहं चेव तिविहेणं // 72 // एगविहं दुविहेण इक्विक्कविहेण छट्टो होइ / उत्तरगुण सत्तमश्रो अविरतयो चेव अट्ठमयो॥७३॥ पणय चउक्कं च तिगं दुगं एगं च गिराहइ वयाई। अहवावि उत्तरगुणे अहवावि न गिराहई किंचि // 74 // निस्संकिय निक्कंखिय निन्वितिगिच्छा श्रमूढदिट्ठी य / वीरवयणमि एए बत्तीसं सापया भणिया // 1575 // पंचएहमणुवयाणं इक्कदुगतिगवउक्कपणगेहिं / पंचगदसदसपणइक्कगे य संजोग कायब्बा / / 1 / / (अन्यक०) वयमिक्कगसंजोगाण हुति पंचएह तीसई मंगा / दुगसंजोगाण दसएह तिनि सट्ठा सया हुति / / 1 // तिगसंजोगाण दसएह मंगायं इक्कवीसई सट्ठा / ६उसंजोगाण पुणो घउसठसयाणिऽसीयाणि / / 2 / / सत्तु त्तरि सयाई छसत्तराई व पंवसंजोए / उत्तर गुण अविरय मेलियाण जाणाहि सव्वग्गं // 3 // सोलस घेव सहस्सा अट ठसया पेव होंति अहिया / एसो उवासगाणं वयगहणविही समा सेणं / / 4 / / (प्र०) तत्थ समणोवासश्रो पुवामेव मिच्छत्तायो पडिक्कमइ, संमत्तं उयसंपजइ, नो से कप्पइ अजप्पभिई अन्नउथिए वा अन्नउत्थियदेवयाणि वा अन्नउत्थियपरिग्गहियाणि अरिहंतचेइअाणि वा वंदित्तए वा नमंसित्तए वा पुचि श्रणालत्तएणं बालवित्तए वा संलवित्तए वा, तेसिं असणं वा पाणं वा खाइमं वा खाइमं वा दाउं वा अणुप्पयाउं वा, नन्नत्थ रायाभियोगेणं गणाभियोगेणं बलाभियोगेणं देवयाभियोगेणं गुरु निग्गहेणं वित्तीकंतारेणं, से य संमत्ते पसत्थसंमत्तमोहनीय-कम्माणुवेयणोव
SR No.004373
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1976
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_aavashyak, & agam_oghniryukti
File Size23 MB
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