________________ 195 [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / द्वादशमो विभागः कस्सइ नाम कीरइ देहोवि वुचई कायो। कायमणिग्रोवि वुच्चइ बद्धमवि निकायमाहंसु // 45 // अक्खे वराडए वा कट्ठ पुत्थे य चित्तकम्मे य। सम्भावमसम्भावं ठवणाकायं वियाणाहि // 46 // लिपगहत्थी हस्थित्ति एस सम्भाविया भवे ठवणा / होइ असब्भावे पुण हस्थिति निरागिई अक्खो // 47 // ओरालियवेउब्विय-पाहारगतेयकम्मए चेव / एसो पंचविहो खलु सरीरकायो मुणेयवो॥ 1448 // चउसुवि गईसु देहो नेरइयाईण जो स गइकाओ / एसो सरीरकाओ विसणा होइ गइकाओ॥१॥ (प्र०) जेणुवगहियो वच्चइ भवंतरं जचिरेण कालेण / एसो खलु गइकायो सतेयगं कम्मगसरीरं // 1441 // निययमहियो व कायो जीवनिकायो निकायकायो य / अत्थित्तिबहुपएमा तेणं पंचत्थिकाया उ॥ 1450 // (भा०) जंतु पुरक्खडभावं दवियं पच्छाकडं च भावाओ / तं होइ दब्वदवियं जह भविओ दवदेवाई // 229 // जइ अत्थिकायभावो इअ एसो हुन्न अत्थिकायागं / पच्छाकडुम तो ते हविज्ज दब्वत्थिकोया य // 230 // तीयमणागयभावं जमत्थिकायाण नत्थि अत्थितं / तेन र केवलएसु नत्थी दबत्थिकायत्तं // 1451 // कामं भवियसुराइसु भावो सो चेव जाथ वट्टति / एस्सो न ताव जायइ तेन र ते दवदेवुत्ति // 52 // दुहयोऽणंतररहिया जइ एवं तो भवा अणंतगुणा / एगस्स एगकाले भवा न जुज्जति उ अणेगा // 53 // दुहयोऽणंतरभवियं जह चिटुइ अाउग्रं तु जं बद्धं / हुजियरेसुवि जइ तं दव्वभवा हुज तो तेऽवि // 54 // संझासु दोसु सूरो अदिस्समाणोऽवि पप्प समईयं / जइ अोभासइ खित्तं तहेव एयंपि नायव्वं // 1455 // (भा०) माउयपयंति मं नवरं अन्नोवि जो पयसमूहो / सो पयकाओ भन्नइ जे एगपए बहू अत्था // 231 // संगहकायोऽणेगावि जत्थ एगवयणेण धिप्पंति / जह सालिगामणासे