________________ कल्पसूत्र मृळ // 11 // निग्गथस्स निग्गंथीए वा गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविट्ठस्स निगिज्झिय निगिज्झिय बुट्टिकाए निवइज्जा, कप्पइ से अहे , आरामंसि वा अहे उवस्सयंसि वा अहे वियडगिहंसि वा अहे रुक्खमूलंसि वा उवागच्छित्तए, नो से कप्पइ पुब्वगहिएणं भत्तपाणेणं| वेलं उवायणावित्तए, कप्पइ से पुव्वामेव वियडगं भुच्चा पिच्चा / पडिग्गहगं संलिहियं संलिहिय संपमज्जिय संपमज्जिय एगाययं / भंडगं कटु सावसेसे सूरे जेणेव उवस्सए तेणेव उवागच्छित्तए, नो से // 11 //