________________ सीआगमसुधासिन्धुः शमो विभागा' त्याचे कुसीलाही महापबंधेयं यन्नविए, एत्थं च जा जा कथइ अण्णण्णवायण सा सुसुणियसमयसाहितो पउंसेज यन्वा / जओ मूलादरिसे चेन बहगंधं विप्पण, तहिचजत्यसं. बंधाणुलग्गं संबज्झइ तत्थ तत्थ बदएहि सुथहरोहि संमिलिऊणं संगोवंगदुवालसंगाओ सुथसमुहामी अन्नमन्न अंगउवंगसुयक्वंधअन्झयणुद्देसगा समुच्चिणिऊण किंचि किंचि संबझमा एवं लिहियंति, ण उण सकव्वे कयंति // 2012 // .... पंचेए सुमहापावे, जे ग वजेज गोयमा!। संलावाहीहि कुसीलाही, भमिही सो सुमती जहा // 33 // भवकायाठितिए संसारे, धोरदुक्खसंमोत्यभो / अलहती इसविहे धम्मे, बोहिमहिंसाइलम्वणे एवं तु किर हिंटलंत, संसगीगुणदोसभो। रिसिभिल्लासमवासेणं, णिमण्णं गोथमा ! सुणे // 25 // तम्हा कु. सीलसंसरणी सम्वोवाएहिंगोथमा ! / वज्जियाऽयहियाकंची, अंजदितजाणणे 136 // महानिसीहसुयक्खधस्स नश्यमझयणं // 3 // ॥अथ कुशीलसंसर्गवर्जनास्थ चतुर्थमध्ययनम् / / से गं भयवं कहं पुणा तेण सुमइणा कुसीलसंसामी कायव्या आसी जाय अपुयारिसे अश्वारूणे / भवसाणे समक्रवाए; जेणं भवकायरिठईए अणोरपारं भवसायरं भमिट्टी से बराए दुक्खसंततें अलभने, सवण्णुबरसिए अहिंसालक्खणे खंतादिदस . करमरकर का परभर